नई दिल्ली । समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन की ओर से पश्चिम उत्तर प्रदेश में भाजपा के विजय रथ को रोकने की कोशिश बहुत हद तक बसपा के प्रदर्शन पर भी निर्भर करेगी। विरोधी दलों के बीच किसी भी सीट पर फ्रेंडली फाइट (दोस्ताना संघर्ष) की सहमति नहीं बनी है। बसपा ने कई सीटों पर ऐसे उम्मीदवार उतारे हैं, जो गठबंधन का खेल बिगाड़ सकते हैं। ऐसे में इस क्षेत्र में सियासी समीकरण उलझा हुआ नजर आ रहा है। हालांकि, जानकार मानते हैं कि इससे सपा गठबंधन को नुकसान होगा या भाजपा को विपक्ष की रणनीति से चुनौती मिलेगी, अभी यह दावे से कहना मुश्किल है। फिलहाल, उम्मीदवारों की आपसी खींचतान और विपक्षी मतों के बंटवारे मे भाजपा खुद को बढ़त में देख रही है। जबकि, सपा-रालोद गठबंधन को भरोसा है कि इस बार मतदाता खासतौर पर मुस्लिम वोटर रणनीतिक तरीके से उन्हें ही वोट करेंगे। अगर, पश्चिम में जाट, मुस्लिम और पिछड़ों का अनुमानित गणित कारगर रहा तो भाजपा के लिए यहां पिछला प्रदर्शन दोहराना मुश्किल हो सकता है। वैसे बसपा ने कई सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। जबकि, कई सीट पर जातीय गणित उलझा हुआ है। आशंका जताई जा रही है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में अभी तक के टिकटों के मुताबिक करीब एक दर्जन से ज्यादा सीट ऐसी हैं, जिन पर बसपा के उम्मीदवार सपा गठबंधन के प्रत्याशियों के सामने परेशानी पैदा कर सकते हैं। हालांकि, जानकार यह भी मानते हैं कि इस बार की चुनावी तस्वीर में मुकाबला जिस तरह भाजपा बनाम सपा का दिख रहा है, इसका असर मतदान पर भी नजर आएगा। चुनावी प्रबंधकों का मानना है कि जिन सीट पर सपा और बसपा दोनों के मुस्लिम उम्मीदवार हैं या अन्य जातीय समीकरण एक-दूसरे को प्रभावित करने वाले होंगे, उनमें मतदाताओं का स्वाभाविक रुझान सपा की ओर हो सकता है। यह जरूर है कि जिन सीट पर उम्मीदवार सिंबल पर निर्भर रहने के बजाय व्यक्तिगत रूप से ज्यादा मजबूत होंगे, वहां समीकरण अलग देखने को मिल सकते हैं। जानकारों का कहना है कि कांग्रेस उम्मीदवारों की भी पूरी तरह अनदेखी करना सही आकलन नही होगा। कई सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार भी चुनावी गुणा-भाग पर सीधा असर डाल सकते हैं। पहले चरण के मतदान वाली सीटों पर कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को डोर-टू-डोर प्रचार के लिए मैदान में उतारकर अपने इरादे साफ कर दिए हैं कि वह आसानी से मैदान छोड़ने के मूड में नही है।
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