लखनऊ. कैराना पहुंचे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को पश्चिमी उत्तर प्रदेश से 2022 के चुनाव की बिसात बिछा दी। भले ही पलायन के बाद वापस लौटे सभी परिवारों के सदस्यों से योगी की मुलाकात न हो पाई हो, उनकी यह मुलाकात प्रतीकात्मक कही जाए, पर मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव ने वहां जो कुछ कहा, जो कुछ किया, उसमें बड़ा संदेश छिपा है। रही-सही कसर पूरी कर दी कैराना के बाद मुख्यमंत्री के रामपुर दौरे ने।
मुख्यमंत्री ने लोगों को भाजपा सरकार के एजेंडे को पूरा करने का भरोसा देने की कोशिश की तो कानून-व्यवस्था के साथ सुरक्षा व सम्मान पर भी आश्वस्त किया। कानून-व्यवस्था जिस तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रमुख मुद्दा रहता है उसको देखते हुए मुख्यमंत्री ने एक तरह से वहां के हिंदुओं को यह आश्वासन दिया कि उनकी सरकार के रहते न तो उन्हें बेटियों से छेड़छाड़ होने की चिंता करनी है। साथ ही भरोसा दिया कि अब किसी व्यापारी को वसूली व रंगदारी का ख्याल भी मन में नहीं लाना चाहिए। मुजफ्फरनगर जैसे दंगों की आशंका भी नहीं है।
बच्ची के बहाने सबको किया आश्वस्त
प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने जिस तरह मुख्यमंत्री के बगल बैठी एक छोटी बच्ची को संबोधित करते हुए यह कहा,‘ बेटा, बाबा के रहते डरने की जरूरत नहीं है’ उससे भी यह साफ हो जाता है कि भाजपा ने मुख्यमंत्री के इस दौरे के जरिये एक तरह से पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों को सुरक्षा और सम्मान के सवाल पर निश्चिंत रहने का संदेश देने का प्रयास किया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के समीकरण और वहां के मुद्दों को देखते हुए मुख्यमंत्री व प्रदेश अध्यक्ष का यह दौरा संक्षिप्त होते हुए भी सियासी समीकरणों को विस्तार देने वाला है।
कैराना व रामपुर का संदेश इसलिए अहम
कैराना नौ-दस सालों से हिंदू परिवारों के पलायन को लेकर काफी चर्चा में रहा है। विधानसभा से लेकर लोकसभा और राज्यसभा तक यह मुद्दा गूंजता रहा। ऊपर से 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे की तपिश ने जिस तरह पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति को हिंदू-मुस्लिम के खांचे में बांटा, उसके चलते कैराना इस पूरे क्षेत्र की राजनीति का एक प्रतीक बन गया है।
योगी का इस कस्बे में जाने का मतलब सिर्फ एक स्थान पर जाना और कुछ लोगों से मिलना भर नहीं था, बल्कि इसके जरिये ऐसे मुद्दों पर अपनी सरकार की रीति-नीति का संदेश देना था। वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र भट्ट कहते हैं, विपक्ष को शायद इसलिए ज्यादा परेशानी हो रही है क्योंकि इस मुद्दे पर बात उठने पर वह भी कठघरे में खड़े होंगे। पिछली सरकारें भी सवालों के घेरे में होंगी।
लोगों को उनके सम्मान व सुरक्षा की गारंटी देना सरकार की जिम्मेदारी है। रही बात राजनीतिक नफा-नुकसान की तो सियासी दलों का तो यह काम ही है कि वे अपना जनाधार मजबूत करने की कोशिश करते रहें। वहीं रामपुर दौरा इसलिए अहम है कि यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक ऐसा जिला है जो सपा नेता आजम खां के नाते लगातार सुर्खियों में रहा है और उन्हीं के नाते राजनीति में हिंदुओं व मुस्लिमों के ध्रुवीकरण का भी प्रतीक रहा।
इसलिए बढ़ेंगी विपक्ष की चुनौतियां
कैराना में पलायन व रामपुर में भू-माफिया जैसे शब्दों के सहारे योगी ने जो बिसात बिछाई है विपक्ष को अब इन्हीं मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमना पड़ेगा। 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी योगी आदित्यनाथ ने ‘कैराना को कश्मीर नहीं बनने देंगे’ के जरिए कैराना सहित पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अन्य कुछ स्थानों से हिंदुओं के पलायन और उनके साथ हो रहे अन्याय को मुद्दा बनाया था। साथ ही भाजपा सरकार बनने पर पलायन करने वाले परिवारों को सम्मान सहित वापस लाकर बसाने के साथ ही ऐसा इंतजाम करने का वादा किया था कि भविष्य में कोई किसी को इसके लिए मजबूर न कर सके। उस समय विपक्ष ने भाजपा पर सांप्रदायिक राजनीति करने का आरोप लगाया था।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जिस तरह भाजपा के विपक्षी दल के नेताओं ने उस समय इस मुद्दे पर अपनी भूमिका को सही ठहराने की कोशिश की थी, कैराना व मुजफ्फ रनगर के दर्द और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों के दिमाग में हलचल मचा रहे सम्मान व सुरक्षा के सवाल को नहीं समझा, मुजफ्फरनगर दंगा को लेकर मो. आजम खां के रवैये पर उठने वाले सवालों की अनदेखी की और आजम के जरिये मुस्लिमों के ध्रुवीकरण की राजनीति को तेवर दिए, यदि उन्होंने मुख्यमंत्री के संदेश को समझने में उसी तरह देर की तो उनकी मुश्किलें बढ़ेंगी।
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