नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में 2021 के विधानसभा चुनाव ने ममता बनर्जी की अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को शानदार जीत मिली थी। प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनी। इससे पहले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भी बंगाल में शानदार प्रदर्शन किया था। 42 लोकसभा सीटों में से 18 पर जीत हासिल की थी। कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) या सीपीआई (एम) और उसके वामपंथी सहयोगियों को नई विधानसभा में एक भी विधायक नहीं मिला है। विधानसभा चुनाव जीतने के बाद ममता निश्चिंत से नहीं बैठीं। वह लगातार पार्टी के विस्तार में जुटी हैं। टीएमसी पश्चिम बंगाल में भाजपा के नेताओं और विधायकों तो अन्य भारतीय राज्यों में कांग्रेस के नेताओं और विधायकों का लगातार शिकार कर रही है। ताजा मामला मेघालय का है, जहां कांग्रेस के 12 विधायकों ने टीएमसी का दामन थाम लिया। इससे अब पूर्वोत्तर राज्य में टीएमसी अब मुख्य विपक्षी दल बन जाएगी। अगर टीएमसी के विस्तार को राष्ट्रीय फलक पर देखें तो इन दिनों सियासी गलियारों में एक सवाल गूंज रहा है, क्या टीएमसी भारत में प्रमुख विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस की जगह ले सकती है? हालांकि न तो टीएमसी और न ही ममता बनर्जी ने इस आशय का कोई स्पष्ट दावा किया है, लेकिन उनकी विस्तारवादी नीति उनकी इस महत्वाकांक्षा को प्रदर्शित करते हैं।
लोकसभा सीटों के मामले में टीएमसी के लिए कांग्रेस को पछाड़ना संभव
चुनावी नतीजों की भविष्यवाणी करना हमेशा खतरनाक होता है। 2024 के चुनाव अभी बहुत दूर हैं। इस चेतावनी के साथ, टीएमसी को कांग्रेस से अधिक लोकसभा सीटें मिलने का तार्किक मामला बनाया जा सकता है। लोकसभा चुनावों में टीएमसी का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2014 में था, जब उसने पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 34 सीटों पर 39.8% वोट शेयर के साथ जीत हासिल की थी। 2021 के विधानसभा चुनावों में टीएमसी का वोट शेयर 48.5% था। संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के अनुसार 2021 विधानसभा क्षेत्र के परिणामों के आकलन पर राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 32 सीटों पर टीएमसी को बढ़त मिली थी। आज की जो स्थिति है उसके मुताबिक, भाजपा पश्चिम बंगाल में चुनाव से पहले की तुलना में एक कमजोर हुई है। इसका मतलब यह है कि टीएमसी 2024 पश्चिम बंगाल से लोकसभा की अपनी संख्या 2019 से काफी ऊपर ले जाने की उम्मीद कर रही होगी। कांग्रेस की बात करें ते 2019 के आम चुनावों में 52 लोकसभा सीटें जीतने में सफल रही थी। इनमें से 31 सिर्फ तीन राज्यों: केरल (15) और पंजाब (8) और तमिलनाडु (8) से आए थे। 2021 के केरल विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी खराब रहा। तमिलनाडु में कांग्रेस की किस्मत द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) के साथ सीट बंटवारे के फॉर्मूले पर निर्भर करेगी। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के बाहर होने से पार्टी को विभाजन का सामना करना पड़ा है। असम में कांग्रेस को 2019 में तीन लोकसभा सीटें हासिल हुईं थी। हालांकि, अखिल भारतीय संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (एआईयूडीएफ) के साथ कांग्रेस का गठबंधन 2021 के विधानसभा चुनावों में बुरी तरह विफल रहा।
कांग्रेस से अधिक लोकसभा सीटें टीएमसी को राष्ट्रीय विकल्प नहीं बनाएगी
भले ही टीएमसी लोकसभा सीटों के मामले में कांग्रेस को पछाड़ने में कामयाब हो जाए, लेकिन प्राथमिक विपक्षी दल के रूप में पहचाने जाने के उसके दावे की विश्वसनीयता नहीं होगी। इसका सीधा सा कारण यह है कि संकट की घड़ी में भी कांग्रेस का राष्ट्रीय स्तर पर टीएमसी से कहीं अधिक बड़ा स्थान है। यह वोट शेयर के मामले में सबसे अच्छा देखा जाता है। 2019 के आम चुनावों में, कांग्रेस का अखिल भारतीय वोट शेयर 19.5% था। टीएमसी ने जब 2014 के आम चुनावों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन हासिल किया था, तब भी उसका राष्ट्रीय वोट शेयर सिर्फ 4.1% था।