नई दिल्ली । आगामी 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों और 2024 में होने वाले आम चुनाव के भी मद्देनजर समाज के वंचित वर्गों के बीच भरोसा बढ़ाने की होड़ अभी से दिखने लगी है। नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली बीजेपी जहां इनके बीच अपनी पहुंच और मजबूत करने की कोशिश कर रही है, वहीं कांग्रेस भी अपने सबसे पुराने और पारंपरिक वोट को दोबारा हासिल करने के लिए नए सिरे से जोर लगा रही है। इस सियासी खींचतान का असर जमीन पर भी दिख रहा है। केंद्र सरकार ने इसी इरादे से बिरसा मुंडा के जन्म दिवस 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। इसके तहत सरकार 15 से 22 नवंबर तक जनजातीय समुदायों के गौरवशाली इतिहास और संस्कृति को लेकर कार्यक्रम आयोजित कर रही है। इसी क्रम में नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश में एक कार्यक्रम में भाग भी लिया। वहीं, कांग्रेस पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाकर दलितों के बीच बड़ा संदेश देने की कोशिश की।
2014 से पहले बीजेपी के सामने अपना सामाजिक विस्तार बढ़ाने की सबसे अधिक चुनौती होती थी। लेकिन नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी ने इस मिथक को तोड़ते हुए दलित और आदिवासियों के बीच पहले के मुकाबले अपना जनाधार बहुत बढ़ाया। इसका पहला बड़ा असर 2014 आम चुनाव में दिखा। तब बीजेपी ने 131 सुरक्षित सीटों में से 67 सीटों पर जीत हासिल की। 2019 आम चुनाव में पार्टी ने प्रदर्शन को और सुधारते हुए इसमें 10 सीटों की और वृद्धि कर ली और 77 सुरक्षित सीटों पर कब्जा कर लिया। जहां तक दलित वोट का सवाल है, उसका सबसे अधिक असर उत्तर प्रदेश में दिखा। राज्य में खासकर गैर-जाटव दलितों में से 60 फीसदी ने बीजेपी को वोट किया। वह तब हुआ, जब राज्य में मायावती और अखिलेश यादव के बीच गठबंधन था। इस तरह कह सकते हैं कि बीजेपी की हालिया बड़ी चुनावी सफलताओं के पीछे इन दोनों तबकों का बड़ा योगदान रहा, लेकिन इन वोटों को पाने के लिए बीजेपी ने हर स्तर पर अलग-अलग रणनीति बनाई। पीएम मोदी ने अब तक अपने राजनीतिक सफर में नए वोट बैंक बनाने का कई सफल प्रयोग किया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में नियो मिडल क्लास (नव-मध्यवर्ग) से एक नया सोशल वोट बैंक बनाने की शुरुआत की। उन्होंने छोटे कस्बों में रहने वाले गरीब और मध्यवर्गीय आबादी पर इस लिहाज से ध्यान दिया। आर्थिक विकास के बीच यह बहुत बड़े वर्ग के रूप में उभरा है, जिसे उससे पहले तक किसी राजनीतिक दल ने टारगेट नहीं किया था। फिर पीएम बनने के बाद मोदी ने उज्ज्वला, प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी सरकारी स्कीमों से अपने लिए नया जनाधार बनाया। इससे बीजेपी ने उस तबके के बीच बड़ी सेंध लगाई, जिसकी बदौलत कांग्रेस देश में चार दशक से भी अधिक समय तक लगातार शासन करती रही। इन वंचित समाज तक पहुंचने की पीएम मोदी की अगुआई में की जाने वाली बीजेपी की कोशिशों को आरएसएस का भी साथ मिला। सामाजिक समरसता मंच के जरिए उसने दलितों में अच्छी पैठ बनाई है। अब बीजेपी के सामने बड़ी चिंता इस वोट बैंक को बनाए रखने की है। इस चिंता के पीछे कई वजहें हैं। पहली, महंगाई और अन्य दिक्कतों से यह वर्ग सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। हालांकि कल्याणकारी योजनाओं से सरकार ने इसकी मदद करने की कोशिश जरूर की, लेकिन पार्टी को पता है कि इन तक पहुंच बनाए रखने के लिए सीधा संवाद और बेहतर करना होगा। दूसरी, भले लोकसभा चुनावों में इन समुदायों का वोट अधिक मिला, लेकिन राज्यों के चुनाव में इसमें कमी का ट्रेंड भी है। पूरे देश में सबसे अधिक आदिवासी आबादी मध्य प्रदेश में है, जहां 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बीजेपी से उनका वोट वापस लेने में बहुत हद तक सफल रही थी। इसके अलावा झारखंड, पश्चिम बंगाल से लेकर बिहार तक भी दलितों का भी वोट लोकसभा के मुकाबले बीजेपी के पास कम गया।
वहीं कांग्रेस की अगुआई वाले विपक्ष को इन दो वंचित समाजों के बीच पैठ दोबारा स्थापित करने का सियासी मौका दिख रहा है जिसके लिए वह हर सियासी दांव खेलने को तैयार है। पंजाब में पहली बार दलित को सीएम बनाने के बाद कांग्रेस अब दलितों को प्रतिनिधित्व देने की दिशा में आक्रामक दिख रही है। सूत्रों के अनुसार, राजस्थान में भी अशोक गहलोत अपने नए प्रस्तावित मंत्रिमंडल में दलितों को अधिक प्रतिनिधित्व दे सकते हैं। उसी तरह दूसरे राज्यों में भी दलितों के नेतृत्व को बढ़ावा देने की रणनीति बनी है। सुरक्षित सीटों पर भी कांग्रेस अलग रणनीति बनाने में जुट गई है। पार्टी आने वाले विधानसभा चुनावों से लेकर लोकसभा चुनाव तक इस वोट बैंक के बीच फिर से दबदबा बढ़ाने की नीति पर चल रही है। पार्टी सूत्रों के अनुसार शीर्ष नेतृत्व का स्पष्ट संदेश है कि इन समुदाय से जुड़े नेताओं को पूरी भागीदारी मिले।
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