दक्षिणापथ, दुर्ग। भारतीय संस्कृति में अजामिल की कथा प्रसिद्ध है . अजामिल विचित्र आदमी था . गुस्सैल . कंजूस . स्वार्थी . शिकारी . हिंसक . आचार भ्रष्ट . धर्मवंचित . उसने एक वेश्या से शादी कर ली थी और उन्हें नौ संतान हुएं थें . मतलब कि अपने गांव में वह हर तरह से बदनाम था . ऐसे आदमी की कथा में सुनने लायक क्यां होगा वह प्रश्न है . पर कथा में प्रभु के नाम की महिमा है .
हुआ यूं कि उसके गांव में एकबार ब्राह्मणों का संघ आया . कुछ पचीस से तीस भूदेव थें . एक मजाकिया आदमी ने उन सभी को कहा कि आप अजामिल के घर चले जाओ . अब भूदेव समूह अजामिल के घर पहुंचा . अजामिल बहार गया था . उसकी पत्नी अचानक आए हुए ब्राह्मणों को देखकर चौंक गई . कहने लगी : आप वापिस चले जाओ , आप अजामिल को जानते नहीं हो . वह आपको अपमानित कर देगा , प्रताड़ित करेगा .
ब्राह्मणों ने कहा कि हम खाली हाथ वापिस नहीं जाएंगे . महिला ने उन्हें कच्चा धान देकर रवाना कर दिया . ब्राह्मणों ने उस धान से खाना बनाया , खाया और महसूस किया कि यह धान अजामिल के घर से आया है , लगता है कि अजामिल का जीव ऊंचा है .
वो लोग वापिस , अजामिल के घर आएं . अजामिल घर में नहीं था . उसकी महिला को ब्राह्मणों ने बताया कि अजामिल अच्छा आदमी है , उसे गलत संगत की आदत है . हमारी सूचना है कि आप अपनी दसवी संतान का नाम रखना : नारायण .
ब्राह्मण चले गएं . दसवी संतान का नाम रखा गया : नारायण . दिन बितें , बरसों बितें . अजामिल वृद्ध हुआ . नारायण के बाद आगे कोई संतान नहीं हुई . सबसे छोटा नारायण सबसे ज्यादा प्रिय बन गया . एकदा रात को अजामिल ने सपना देखा कि यमदूत अजामिल को लेने आएं थें . वह डर के जाग गया . यमदूत सहीं में आये थें . अजामिल ने डर के मारे – नारायण नारायण की चीख़-पुकार लगाई .
हिंदू परंपरा की कथा है . जैसे ही अजामिल ने डर के मारे – नारायण नारायण की चीख़ लगाई वैसे ही , विष्णु भगवान् प्रगट होकर यमदूतों को रोकने लगें . यमदूत रूकें नहीं तो विष्णु ने यमदूतों की भारी पिटाई की . यमदूत वापिस लौटकर यमराज के पास पहुंचें . यमराज ने आश्चर्य चकित होकर विष्णु को पूछा कि क्यों यमदूतों को रोका ?
विष्णु ने कहा : मैं भगवान् हूं , यह भक्त मेरा नाम ले रहा था . और यमराजजी याद रखना – जो मेरा नाम लेता है उसे मैं मरने नहीं देता हूं . इन्सान चाहे कितना भी बुरा हो , जो सब भूलकर भगवान् का नाम लेता है उसे मैं बचा ही लेता हूं .
कथा वास्तविक हो या काल्पनिक , कथा एक संदेश देती है , एक विचार देती है . जो सबकुछ भूलकर भगवान् के स्मरण में रहता है उसकी रक्षा भगवान् करते हैं . श्री उवसग्गहरं पार्श्वनाथ दादा ने एक साल पूर्व कुछ ऐसा ही प्रभाव दिखाया था .
अहमदाबाद के एक एडवोकेट है , नाम नहीं बताऊंगा . उन के पिताजी कोराना में इस तरह फंसे थें कि बचना असंभव था . एक समय ऐसा आया कि डो. ने परिवार को बोल दिया : अब दो घंटे का समय बचा है . जिसे बुलाना है , बुला लो . वह एडवोकेट अपने पिताजी का मुख देखने के लिये , ड्रेस लगाकर केबिन में गयें . पिताजी स्थिर सोएं थें . उन्होंने अपना हाथ पिताजी के कांधे पर रखा , आंखें बंद की और नझर के सामने उवसग्गहरं दादा की देदीप्यमान प्रतिमा लानेकी कोशिश की . विज्युलाईझेशन से उवसग्गहरं दादा को देखते हुए ऊन्हों ने एक से अधिक बार उवसग्गहरं का पाठ किया . प्रभु को प्रार्थना की और केबिन से बाहर आ गयें . दो घंटें के बाद कोरोना ग्रस्त पिताजी को खून की वोमिट हुई , डो . को लगा कि कॅस खतम हो गया , लेकिन वो पिताजी जीवित थें . इतना ही नहीं – पिताजी रिकवर होने लगें थें . कमाल यह है कि दस दिन में एडवोकेट के वह पिताजी स्वस्थ होकर अपने घर वापिस लौट गयें . डॉक्टर ने कहा चमत्कार हो गया . एडवोकेट ने कहा , यह चमत्कार मेरे उवसग्गहरं दादा ने किया है .
जीहां , श्री उवसग्गहरं दादा कलिकाल का महान् चमत्कार है. अजामिल की कथा में जो हुआ वह पौराणिक प्रसंग है जबकि यह घटना आज के समय की है . विश्वास रखना , भगवान् आप की नैया को डूबने से बचाते हैं और समंदर पार पहुंचाते हैं . भगवान् का दर्शन हो , पूूजन हो , अनुष्ठान हो , स्तवन हो या केवल स्मरण हो , भगवान् के साथ आप किसी भी प्रकार जुुुुुुुड़ते हो , आप धन्य हो जाते हो .
मेरे लिये बडे अहोभाव और आनंद की बात है कि आज से मैं श्री उवसग्गहरं दादा की छत्रछाया में हूं . चातुर्मास में व्याख्यान होंगें , कार्यक्रम होंगें , लोग आएंगें पर मेरा ध्यान वहां पर नहीं है . मेरा हृदय बस , इसी बात से प्रसन्न है कि आज से मैं दादा की गोद में रहनेवाला हूं .
धन घडी . धन भाग .
( आषाढ सुदी नोम , वि. सं . २०७७ , १८.७.२०२१ के दिन का प्रवचन )