दक्षिणापथ. नई दिल्ली
दिन बदलते हैं, तारीखें बदलती हैं, समय बदलता है… लेकिन कोई खास दिन, कोई खास तारीख, कोई खास वक्त इतिहास में दर्ज हो जाता है। अगर मानस पटल पर दर्ज किसी तारीख ने खुशी दी हो तो उसे याद करते ही मन फिर से झूम उठता है। 24 जुलाई भी ऐसी ही तारीख है जिसे याद करते ही हमें आजादी का स्वाद पता चलता है, आधुनिकता का अहसास होता है। 24 जुलाई, 1991 का वो दिन जब तत्कालीन वित्त मंत्री और बाद में देश के प्रधानमंत्री बने डॉ. मनमोहन सिंह ने वो क्रांतिकारी बजट पेश किया जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था को समाजवाद के जकड़न से मुक्त कर दिया। लेकिन, क्या बजट में देश को आर्थिक संकट से निकालने की जो दूरदर्शिता दिखी थी, उसका खाका मनमोहन सिंह ने ही खींचा था?
क्या कहते हैं यशवंत, जानिए
उनसे ठीक पहले देश के वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा की मानें तो नहीं। क्यों, आप चौंक गए? महज सात महीने चली चंद्रशेखर सिंह की सरकार के वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा अपनी किताब से लेकर कई बातचीत में यह कह चुके हैं कि मनमोहन सिंह के बजट की संरचना बिल्कुल उनके अंतरिम बजट से मिलती-जुलती थी जिसे उन्होंने मार्च 1991 में पेश किया था। सिन्हा यह दावा करते हुए थोड़े विनम्र जरूर हो जाते हैं, लेकिन यह बताने से नहीं चूकते कि कैसे मनमोहन सिंह से पहले उन्होंने ही भारतीय अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव लाने की तैयारी कर ली थी। वो तो गठबंधन राजनीति की मजबूरियों ने उन्हें मौका ही नहीं दिया और सरकार की स्थिति डांवाडोल हो गई जिससे उन्हें अंतरिम बजट पेश करना पड़ा। इस तरह देश को लाइसेंस राज से मुक्ति दिलाने की उनकी परिकल्पना धरी की धरी रही गई जिसका फायदा मनमोहन सिंह को मिल गया और वो इतिहास के नामी शख्सियत बन गए।
क्या सच बोल रहे हैं यशवंत?
यशवंत सिन्हा ये बातें बताते हुए इशारा करते हैं कि मनमोहन सिंह ने अपने पूर्ण बजट की रूपरेखा, उनके ही अंतरिम बजट से कॉपी की थी। अपनी बात की पुष्टि के लिए वो कुछ तथ्य सामने रखते हैं। सिन्हा कहते हैं, ‘मेरे अंतरिम बजट और मनमोहन सिंह के पूर्ण बजट भाषण के कई पैराग्राफ समान थे।’ फिर बताते हैं कि ऐसा इसलिए क्योंकि जो बजट निर्माण करने वाली जो टीम उनके साथ काम कर रही थी, उसी ने मनमोहन सिंह का बजट तैयार किया था। सिन्हा उस टीम में दीपक नैयर, एसपी शुक्ला, गीता कृष्णन, लाहिरी जैसे नाम गिनाते हैं।
सिन्हा आगे कहते हैं कि जब उन्होंने अटल बिहार वाजपेयी की सरकार में बतौर वित्त मंत्री वर्ष 1998 का बजट पेश किया तो राज्यसभा में कांग्रेस के सांसद अर्जुन सेनगुप्ता ने जो कहा, उस बात से भी यह स्पष्ट हो जाता है कि मनमोहन से पहले उन्होंने बाजार की मुक्ती का खाका खींच लिया था। वो कहते हैं, ‘अर्जुन सेनगुप्ता ने बजट पर चर्चा के दौरान कहा कि 1991 में यशवंत सिन्हा ने बजट की जो रूपरेखा खींची थी, वो बहुत ही सुधारवादी थी, अगर वो बजट आ गया होता तो सिन्हा आज बड़े सुधारवादी के रूप में जाने जाते, लेकिन इस बजट में यशवंत वैसी हिम्मत नहीं दिखा पाए। इस बात का मुझे दुख है।’
यशवंत सिन्हा रिजर्व बैंक (RBI) के 14वें गवर्नर आईजी पटेल के बयान का भी जिक्र करते हैं। उन्होंने कहा, ‘आईजी पटेल ने भी कहीं कहा कि सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था, बजट भी सुधारों को ध्यान में रखकर बनाया जा रहा था। लेकिन सरकार पर ही संकट आ गया और सिन्हा पूर्ण बजट पेश नहीं कर पाए।’ वो अपनी बात मनवाने के लिए कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी का उदाहरण भी देते हैं। उन्होंने कहा, ‘अपनी पुस्तक को लोकार्पण मैंने प्रणब मुखर्जी से करवाया तो उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि मैं जानता हूं कि 1991 का बजट यशवंत सिन्हा ने तैयार किया था, जिसे हमलोगों के कारण पेश करने का मौका नहीं मिला। इन्हीं का बजट मनमोहन सिंह ने पेश किया।’
तब सात महीने वित्त मंत्री रहे थे यशवंत सिन्हा
ध्यान रहे कि 1989 में जनता दल की सरकार बनी और विश्वनाथ सिंह प्रधानमंत्री बने। लेकिन, 1990 में बीजेपी ने समर्थन वापस लिया तो चंद्रशेखर सिंह ने जनता दल को तोड़कर समाजवादी जनता पार्टी (SJP) बना ली। उन्होंने 64 सांसदों के समर्थन से नई सरकार का गठन किया। तब राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने भी उनका समर्थन किया था। तब यशवंत सिन्हा भी चंद्रेशखेर गुट में ही आ गए और 10 नवंबर 1990 को सरकार बनने से लेकर 21 जून 1991, यानी सरकार गिरने तक देश के वित्त मंत्री रहे। हालांकि, जब चंद्रशेखर ने राजीव गांधी के इशारे पर फैसले लेने से इनकार कर दिया तो कांग्रेस पार्टी ने अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई।
मनमोहन सिंह का वो ऐतिहासिक बजट
जब पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में सरकार बनी तब तक देश का आर्थिक संकट बहुत गहरा चुका था। देश का सोना अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के पास गिरवी रखा जा चुका था और सामने देश चलाने की बहुत बड़ी चुनौती थी। ऐसे वक्त में जरूरत थी तो क्रांतिकारी फैसले करने की। नई सरकार के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने जब बजट पेश किया तो यह उम्मीद भी पूरी हो गई। उन्होंने अपने बजट में भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण का रास्ता तैयार कर दिया, लाइसेंस राज से मुक्ति और उद्योगों के बीच प्रतिस्पर्धा की परिकल्पना पेश हुई। सरकार ज्यादा से ज्यादा उद्योगों से अपने हाथ खींचकर खुद को सिर्फ बाजार के रेग्युलेशन तक सीमित रखने की भूमिका में आ गई और मुक्त बाजार ने समृद्धि का वह रास्ता दिखाया जिस पर चलते हुए भारत जल्द ही 5 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी बनने का सपना देख रहा है।