नई दिल्ली । पंजाब और हरियाणा के बीच करीब 20 साल से सतलुज यमुना लिंक विवाद चल रहा है। एसवायएल नहर विवाद मामले पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। अटर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी देकर कहा जलशक्ति मंत्रालय इस विवाद को सुलझाने के प्रयास कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने पंजाब सरकार पर आरोप लगाया है। केंद्र ने कहा है कि पंजाब की मान सरकार सतलुज-यमुना लिंक विवाद सुलझाने में सहयोग नहीं कर रही है।इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय को कहा कि इस मुद्दे पर एक महीने के भीतर पंजाब और हरियाणा से मीटिंग करें, जिसमें मुद्दे के हल पर विचार करें। इसकी रिपोर्ट तैयार कर सुप्रीम कोर्ट में सौंपे। मामले की अगली सुनवाई 19 जनवरी 2023 को होगी। अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा हमारी ओर से पंजाब के नए मुख्यमंत्री को मीटिंग के लिए अप्रैल में पत्र भेजा गया था, लेकिन उनके तरफ से कोई जवाब नहीं आया है। इसपर सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार से कहा कि वहां खुद आगे आकर समस्या का समाधान निकाले। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पंजाब के मुख्यमंत्री और हरियाणा के मुख्यमंत्री समेत जल शक्ति मंत्रालय इस महीने के अंत में मीटिंग करे और निष्कर्ष तक पहुंचे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा सतलुज-यमुना लिंक पर मीटिंग की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में भी दाखिल की जाए। हम चार हफ्ते का समय देते हैं इसके बाद इस मामले की रिपोर्ट दाखिल की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा हमें आशा है, विवाद का हल सरकारें मध्यस्थता करके सुलझा लेगी। कोर्ट ने साफ किया था कि लिंक नहर का निर्माण करना ही होगा, उसमें कितना पानी आएगा ये बाद में तय किया जाएगा। कोर्ट ने हरियाणा और पंजाब को कानून व्यवस्था बनाए रखने के आदेश दिए। कोर्ट ने कहा कि सतलुज यमुना लिंक को लेकर यथास्थिति बरकरार रखने के आदेश बरकरार रहने वाले है। राज्यों में कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी दोनों राज्यों पर है। पंजाब और हरियाणा दोनों सुनिश्चित करें कि लिंक नहर को लेकर कानून व्यवस्था ना बिगड़े। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार थी। केंद्र में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अगुआई वाली सरकार थी। जिन्होंने यह नहर बना पानी बांटने का फैसला किया। 1982 में विवाद तब बढ़ा, जब पटियाला के कपूरी में एसवॉयएल नहर बनाने का उद्घाटन कर दिया गया।
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