वाटरलू । वैज्ञानिकों ने दावा किया है की पृथ्वी की इक्वेटर लाइन और उसके आसपास के उष्णकटिबंधीय इलाकों में ओजोन परत में बड़ा छेद हो गया है। ये छेद अंटार्कटिका के ऊपरी हिस्से में बने ओजोन होल से सात गुना बड़ा है और यही कारण है की धरती का तापमान तेज़ी से बढ़ रहा है।ओजोन परत, धरती का एक सुरक्षा कवच है। इसकी सबसे ख़ास बात है की ये हमें अल्ट्रा-वायलेट किरणों से बचता है। यदि इंसान इन खतरनाक किरणों के चपेट में आये तो कई बीमारियों से जूझना पड़ जाएगा। यूनिवर्सिटी ऑफ वाटरलू के वैज्ञानिक और रिसर्च के मुख्य लेखक क्वींग बीन लू ने कहा, ‘ट्रॉपिक्स ग्रह के आधे क्षेत्र को कवर करता है जिसमें दुनिया की लगभग आधी आबादी रहती है।’ अगर इस बात की पुष्टि हो जाती है की परत का छेद गहरा हो गया है तो पृथ्वी की आधी आबादी पर स्किन कैंसर और कई अन्य बीमारियों का संकट आ जाएगा।साल 1970 के दशक में वैज्ञानिकों का ये मानना था की इंडस्ट्रियल केमिकल क्लोरोफ्लोरोकार्बन ने ओजोन लेयर को भारी नुकसान पहुंचाया। यह एक वैश्विक समस्या बन गयी थी जिसके बाद इस केमिकल के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया। वैज्ञानिकों के मुताबिक पृथ्वी के ट्रॉपिकल और अंटार्कटिका क्षेत्र में बने होल एक दूसरे से काफी अलग है। इनके विपरीत होने का कारण केवल आकर नहीं है ये मौसम के अनुरूप अपने आप को बदल लेते है। सितंबर से अक्टूबर महीनो के बिच O3 सबसे कम होता है लेकिन इसका साइकल शुरू होने से पहले O3 अपने आप भर जाता है।जबकि ट्रॉपिकल क्षेत्र में बने ओजोन होल से अल्ट्रावायलेट रेडिएशन बढ़ता है।ट्रॉपिकल ओजोन होल में अल्ट्रावायलेट रेडिएशन अधिक होता है। इसका इंसानों पर खतरनाक प्रभाव पड़ सकता है। मोतियाबिंद, स्किन कैँसर और इम्यून सिस्टम के कमजोर होने से लेकर कृषि उत्पादकता में भी भारी नुकसान हो सकता है। वैज्ञानिक लू के मुताबिक यह छेद 1980 से अस्तित्व में हैं जिसकी पहचान अब हो पाई है। कई वैज्ञानिकों ने इन दावों को गलत ठहराया है। डॉ पॉल यंग ने कहा, ‘ट्रॉपिकल ओजोन होल जैसी कोई चीज नहीं है।
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