बिश्केक । जानलेवा कोरोना वायरस के दंश से पहले भी अनेक प्रकार की महामारी से विश्व तबाह हो चुका है। अब तक की सबसे खतरनाक महामारियों में से ब्लैक डेथ भी है। ब्लैक डेथ या प्लेग की शुरुआत को लेकर रहस्य है। लेकिन अब शोधकर्ताओं का मानना है कि उन्होंने 684 साल पुराने रहस्य का पता लगा लिया है। प्राचीन शवों का डीएनए टेस्ट करके शोधकर्ताओं ने ये खोज की है। 14वीं शताब्दी में इस प्लेग ने पूरी दुनिया में तबाही मचाई थी। इसके कारण करोड़ों लोगों की मौत हुई थी। दशकों से शोधकर्ताओं के बीच महामारी की उत्पत्ति बहस का विषय रही है, जिसमें बहुत सारे सिद्धांत थे, लेकिन कोई सबूत नहीं था। अब वर्तमान किर्गिस्तान में एक कब्रगाह से मिले डीएनए का विश्लेषण करने पर शोधकर्ताओं ने प्लेग की शुरुआत की तारीख 1338 बताई है। शोधकर्ताओं को यहां दफन लोगों के दांतों में प्लेग फैलाने वाले बैक्टीरिया का डीएनए मिला है। शोधकर्ताओं ने कहा कि एक दशक से भी कम समय बाद पूरी दुनिया में प्लेग फैला जिसका डीएनए और किर्गिस्तान में मिला डीएनए लगभग एक समान है।
जर्मनी के लीपज़िग में मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर इवोल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी के प्रोफेसर जोहान्स क्रूस और अन्य लेखकों ने अपनी खोज को एक जर्नल नेचर में प्रकाशित किया। इस खोज से कई तरह के अनुमान खत्म हो गए हैं। प्लेग दुनिया भर में कैसे फैला ये समझने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही उन स्थितियों के बारे में पता चलेगा जिनके कारण ब्लैक डेथ उभरा। इस शोध के जरिए पुरानी बीमारियों को समझने में मदद मिलेगी।
कई इतिहासकार लंबे समय से कहते रहे हैं कि किर्गिस्तान के कब्रिस्तान में प्लेग पीड़ितों को दफन किया गया। अब इस बात के सबूत मौजूद हैं। दक्षिण कैरोलिना विश्वविद्यालय में प्रोफेसर शेरोन डेविट कहते हैं कि ये ठोस सबूत हैं। अभी तक इन लोगों पर प्लेग से मरने का संदेह था। नई रिसर्च के निष्कर्ष आश्वस्त करने वाले हैं और संभव है कि इन लोगों की प्लेग के पहले चरण में मौत हुई हो। शेरोन डेविट के मुताबिक यह महामारी साल 1346 में पूरे यूरोप में फैल गई थी। प्लेग के फैलने से पहले ही इसका खौफ फैल गया था। लंदन में प्लेग फैलने से पहले ही शवों को दफनाने के लिए बड़ी जगह छोड़ दी गई थी। जिस शहर में प्लेग फैला वहां 30-60 फीसदी आबादी खत्म हो गई। ये कैसे फैला इसे लेकर भी कई थ्योरी हैं। एक थ्योरी ये भी है कि मक्खियों के काटने से यह फैला था। ये महामारी करीब 400 साल तक रही। गुजरात के सूरत में भी ये प्लेग फैला था, जिसमें बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे।
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