एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला, किशोर न्याय अधिनियम

by sadmin

जूवेनाइल जस्टिस अधिनियम बाकी अन्य अधिनियमों से भिन्न है, यह एकमात्र ऐसा अधिनियम है जिसमें ‘जस्टिस‘ शब्द का प्रयोग किया गया है.

दुर्ग। राजेश श्रीवास्तव जिला एवं सत्र न्यायाधीश/ अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण दुर्ग के मार्गदर्शन एवं अध्यक्षता में सभागार जिला न्यायालय दुर्ग में एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला किशोर न्याय अधिनियम के विषय पर आयोजित की गई। कार्यशाला का शुभारंभ राजेश श्रीवास्तव जिला एवं सत्र न्यायाधीश/ अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण दुर्ग के द्वारा मां सरस्वती के चलचित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलित कर किया गया। उक्त कार्यशाला में जिले में पदस्थ सभी न्यायाधीशगण उपस्थित थे। प्रतिभागी के रूप में विशेष किशोर पुलिस इकाई के अधिकारी, बाल कल्याण अधिकारी, बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष, सदस्य एवं महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारी एवं पैरालीगल वालिन्टियर उपस्थित थे।
जिला एव्रं सत्र न्यायाधीश द्वारा बताया गया कि जूवेनाइल जस्टिस अधिनियम बाकी अन्य अधिनियमों से भिन्न है। यह एकमात्र ऐसा अधिनियम है जिसमें ‘जस्टिस‘ शब्द का प्रयोग किया गया है। जिला एवं सत्र न्यायाधीश के द्वारा किशोर न्याय अधिनियम के संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि बालक एवं जूवेनाइल का आशय ऐसे बच्चों से है जो 18 वर्ष से कम आयुवर्ग के है। उनके द्वारा यह भी बताया गया कि उक्त अधिनियम बालकों के संरक्षण एवं देखरेख की बात भी करती है।
कार्यशाला में रिसोर्स पर्सन के रूप में श्रीमती अपूर्वा दांगी प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट किशोर न्याय बोर्ड, श्रीमती वी. प्रभाराव, निरीक्षक पुलिस विभाग एवं श्रीमती प्रीति अजय बेहरा सदस्य बालक कल्याण समिति उपस्थित थे।
श्रीमती अपूर्वा दांगी, अध्यक्ष किशोर न्याय बोर्ड द्वारा किशोर न्याय अधिनियम के विषय पर विस्तृत जानकारी देते हुए बताया गया कि जहां सक्षम प्राधिकारी को यह प्रतीत होता है कि इस अधिनियम के किसी भी प्रावधान के तहत (साक्ष्य देने के उद्देश्य के अलावा) उसके सामने लाया गया व्यक्ति किशोर या बच्चा है। सक्षम प्राधिकारी उचित जांच करेगा ताकि उस व्यक्ति की आयु और उस प्रयोजन के लिए आवश्यक साक्ष्य लेगा (लेकिन एक हलफनामा नहीं) और यह निष्कर्ष दर्ज करेगा कि वह व्यक्ति किशोर है या बच्चा है या नहीं जिसमें उसकी उम्र लगभग बताई जा सकती है।
श्रीमती वी. प्रभाराव, निरीक्षक छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा किशोर न्याय अधिनियम के कार्यान्वयन में पुलिस और परिवीक्षा अधिकारियों की भूमिका और उनके सामने आने वाली बाधाओं केे संबंध में जानकारी दी गई । साथ ही शासन द्वारा जारी दिशा निर्देशों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह निर्देश किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण) 2000 यथा संशोधित 2006 के प्रभावी क्रियान्वयन के सन्दर्भ में प्रभावी रूप से अनुपालन हेतु निर्गत किये गये है, यह निर्देश विधि के सम्पर्क में आये बच्चों एवं उनकी देखरेख एवं संरक्षण हेतु पुलिस द्वारा अपनायी गई क्रियान्वयन की प्रक्रिया में गुणात्मक सुधार लाने हेतु निर्गत किये गय है, यह निर्देश बाल कल्याण अधिकारी एवं पुलिस अधिकारी की भूमिका, कार्य एवं अपेक्षित व्यवहार हेतु निर्गत किये गये है, सभी जनपदीय पुलिस प्रभारी अपने-अपने जनपद में कार्यशाला आयोजित कर निर्देंशों को अपने अधीनस्थ सभी अधिकारियों को अवगत करा दें और इनका कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करायें। यह निर्देंश किशोर न्याय (बच्चों की देखरख एवं संरक्षण) अधिनियम 2000 यथा संशोधित 2006 के नियम 84 के उपनियम 4 के तहत नाम निर्दिष्ट बाल कल्याण अधिकारी का स्थानान्तरण और तैनाती अन्य पुलिस थानों या जिला स्तर की विशेष किशोर पुलिस इकाईयों के भीतर तब तक की जाएगी जब तक प्रोन्नति का कोई आपवादिक मामला न हो और ऐसे मामलों में अन्य प्रशिक्षित व अभियोग्ता वाले पुलिस अधिकारियों को इकाई में नामनिर्दिष्ट और तैनात किया जाए ताकि कर्मचारियों की कमी न रहे का कड़ाई से अनुपालन करेंगे।
रिसोर्स पर्सन प्रीति अजय बेहरा, सदस्य, बाल कल्याण समिति द्वारा किशोरों की काउंसिलिंग, उनके उपचार एवं देख-रेख की प्रक्रिया के बारे में बताया जिससे उनका मानसिक विकास अवरूद्ध न हो। साथ ही साथ किशोर न्याय अधिनियम की धारा 31 के विधिक पहलू पर भी प्रकाश डालते हुए बाल कल्याण समिति की कार्यशैली एवं उनके समक्ष आने वाली परेशानियों के बारे में अवगत कराया। उक्त कार्यशाला में कुल 72 लोग उपस्थित थे।

Related Articles

Leave a Comment