दक्षिणापथ, दुर्ग। डेढ़ साल से बंद स्कूल आखिर 2 अगस्त से खुलने जा रहे है। छत्तीसगढ़ सरकार ने यह फैसला ले तो लिया है, पर भय का माहौल कायम है। देश के आधा दर्जन राज्यों में भी स्कूल खोले जा रहे है। खासतौर पर शहरी इलाकों के पालक संशय में है कि क्या करें, क्या न करे। यद्यपि बच्चों को मास्क, सेनेटाइजर, दो गज की दूरी व हाथ धोने के लिए लगातार प्रोत्साहित किया जाएगा और कक्षाओ में भी आधी उपस्थिति की व्यवस्था की गई है, पर कक्षा के बाहर बच्चे आखिर एकाकार हो ही जाते है। इसे रोकने के लिए कोई सिस्टम काम नही आ सकता, यह भी सच है। शिक्षा विभाग के बड़े व छोटे अधिकारी लगातार संस्था प्रमुखों की बैठकें लेकर हिदायत दे रहे है। पर जब तक सब ठीक है, तब तक कोई दिक्कत नही, अनहोनी की स्थिति में कोई ठोस उपाय नही है। सर्दी, खांसी, बुखार जैसे लक्षण वाकई बच्चों को कक्षा में नही बिठाना हैं, पर स्कूल तक पहुँचने से उन्हें रोका तो नही जा सकता।
ग्रामीण हलकों में इसी तरह की बातों की चिंता है। जागरूकता के अभाव में पालक उतना ध्यान नहीं दे पाते। इसके बावजूद गांवों के स्कूलों से खबर आ रही है कि पालक अपने बच्चों को मध्यान्ह भोजन नही खिलाना चाह रहे है, बल्कि सूखा राशन को वरीयता दे रहे है। शासन यह भी व्यवस्था कर रही है कि राशन का पैसा सीधे बच्चे या पालक के खाते में डाल सके। इसलिए स्कूलों में बच्चों के खाता नम्बर मंगाए जा रहे है।
बहरहाल, दहशत के साये में स्कूल खुल तो रहे है, मगर आशंकाओं के घने बादल भी छाए हुए है। तमाम एहतियात के बावजूद इस महामारी ने हम सबका बहुत कुछ छीन लिया है। पालक अपने बच्चों को स्कूल भेजने तैयार है, पर मध्यान्ह भोजन पर शंकित हैं। हालांकि पालकों की यह चिंता गैरवाजिब हो सकता है, किन्तु जान की चिंता खत्म अभी नही हुई है। कोरोना के तीसरे लहर की आशंका को हल्के में नही लिया जा सकता। यदि सोचा जाये, कि अब बहुत कुछ ठीक हो गया है, तो इसका मतलब है हमने अतीत से कुछ नही सीखा।
सर्वविदित है पहली लहर के बजाए दूसरी लहर कितनी घातक साबित हुई। यूरोप व अमेरिकी देशों में तीसरी लहर में कोरोना दूसरा वैरिएंट लेकर आई। पर वे इसलिए भी इससे निपट सके, क्योंकि उनकी आधी आबादी टीकाकृत हो चुकी थी। यहां तक बच्चों का वैक्सीनेशन भी किया जा चुका है। पर हमारे यहां बच्चों का कोरोना वैक्सीन अभी भी दूर की कौड़ी है। आज की तारीख मे देश भर में महज 8 फीसद लोगो को कोरोना की डबल डोज़ लगी है। पहला डोज़ भी 27 प्रतिशत लोगो को लगाया जा सका है। इन हालातों में आगामी अगस्त महीने में यदि बच्चों की वैक्सीन आ भी गई, तो लगाने में ही कई महीने गुजर जाएंगे। जोखिम उठाने की मजबूरियों के बीच आखिरकार 2 अगस्त से स्कूल खुलने जा रहे है। पालक समिति व पंचायतों की अनुमति भी ली जाएगी। पर यह भी सच है कि हालात खराब होते है तब हमारे देश मे बीमार को अस्पताल में न पर्याप्त रूप से बिस्तर मिल पाते है और न डॉक्टर। यहाँ तक ऑक्सिजन के अभाव में भी दम तोड़ते लोगो को हमने देखा है। इसलिए हर कदम सोच समझ कर उठाना जरूरी है। अक्सर देखा गया है कि सही समय पर अपनी बेहतर उपस्थिति दिखाने वाला प्रशासन भी जब कठिन वक्त आता है, तो अपना पल्ला झाड़ते हुए नजर आता है।