तेजी से खत्म हो रहे खेल मैदान, पर चिंता किसी को नही

by sadmin

दक्षिणापथ, दुर्ग। ग्रामीण हलकों में भारी तेजी से खेल के मैदान खत्म होते जा रहे हैं। सरकार व आमजन इसकी थोड़ी सी भी चिंता नही करते हुए खाली पड़े मैदानों में सरकारी भवन, धान के फड़ , गोठान एवम अन्य निर्माण कार्य इतनी तेजी से कर रहे है कि आगामी पांच सालों में न सिर्फ खेल के मैदान बचेंगे और न ही सरकारी निर्माण के लिए पर्याप्त जमीन।
गौरतलब है, विगत पांच- छ: सालों में गांवों के रिक्त जमीनों का बडे पैमाने पर दोहन हुआ है। बच्चे जिन मैदानों पर खेलते थे, उसे भी नही बख्शा गया। अब अधिकांश गांवों में खेल के मैदान नही के बराबर रह गए हैं, पर इसकी चिंता करने वाला कोई नहीं। कुछ गिनती के जगहों पर मिनी स्टेडियम बनाये गए है। पर वाजि़ब चिंता कहीं नही दिख रहा है।
मुख्यमंत्री के क्षेत्र पाटन ब्लाक के ग्राम मर्रा में कभी जिले का सबसे बड़ा खेल मैदान हुआ करता था। आज की स्थिति में आधी जमीन कृषि महाविद्यालय बनाया जा रहा है। आधीम जमीन में पहले से ही धान खरीदी केंद्र, सहकारी बैंक और स्कूल का विस्तार कर खत्म कर दिया गया है। अब की स्थिति में बच्चों के खेलने के लिए गांव का गौठान ही एक मात्र जगह रह गया है।
बेमेतरा जिले के बेरला ब्लाक के गांव कुसमी, सरदा, भीमभौरी आदि गांवों के खेल मैदान सिमट कर रह गए हैं। आने वाले कुछेक सालों में उक्त खेल मैदान कितना महफूज रह पाएंगे, कोई भरोसा नही। खेल जीवन के अभिन्न अंग है। बच्चों के विकास में खेल की अहम भूमिका है। विकास की राह में द्रुत गति से चल रहे निर्माण कार्य भी अपनी जगह जरूरी है, किंतु हमे खेल के मैदानों को भी बचाना होगा। जमीनों के मनमाने दोहन के बजाय नियोजित सोच पर आगे बढऩा होगा। देश के भविष्य को हम यदि खेल के मैदान मुहैया न करा पाएं, तो यह देश का दुर्भाग्य ही होगा। छत्तीसगढ़ का मैदान के नाम से पहचाने जाने वाले दुर्ग, रायपुर व बिलासपुर संभाग में मैदानों की कमी चिंताजनक रूप से कम हो रही है। एक तरह से यह बच्चों का अधिकार छीनने का समान है। खेल प्रतिभाओं को अवसर मिलना मुश्किल हो जाएगा। इसके इतर बच्चों के स्वाभाविक विकास भी बाधित होगा।

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