समाज के बुजुर्गों द्वारा उनकी प्रेरक जीवनी की घटनाओं के बारे में समाज के नौनिहालों को किया जागरूक और समाज ने देशप्रेम की शपथ लेकर उनकी जयंती पर किया नमन
दक्षिणापथ,ननकटठी। रविवार को कोरोना काल में राजपूत समाज ननकटठी के द्वारा भारत माता के सच्चे सपूत परम् योद्धा स्वतंत्रता सेनानी महाराणा प्रताप की जयंती को शान्ति पूर्ण तरीके से मनाया गया।कार्यक्रम की शुरुआत महाबली परमवीर योद्धा महाराणा प्रताप जी के तैल्य चित्र पर तिलक लगा माल्यार्पण कर पूजा आरती की गई।कार्यक्रम को यादगार बनाने हेतु हरित छत्तीसगढ़ की परिकल्पना को पूर्ण करने के उद्देश्य से समाज के सदस्यों द्वारा पौधारोपण किया गया।और इन को जीवित रखने की जिम्मेदारी भी दी गई। समाज के बुजुर्गों द्वारा महाबली परमवीर योद्धा महाराणा प्रताप के जीवन की प्रेरक जीवनी की घटनाओं के बारे में समाज के नौनिहालों को संक्षिप्त प्रेरक प्रसंग सुनाकर राजपूत समाज के गौरवशाली इतिहास के बारे में जागरूक किया गया। कार्यक्रम के समापन अवसर पर समाज ने देशप्रेम की शपथ लेकर उनकी जयंती पर नमन कर भावविभोर हो गये और इस अवसर पर देशप्रेम की शपथ भी ली, कि जिस प्रकार महाराणा प्रताप ने अपना सर्वस्व देश के लिए न्योछावर कर दिया उसी प्रकार हमारा समाज भी जीवन के हर क्षेत्र में अपना सर्वस्व निःस्वार्थ भाव से समर्पित कर अपने देश का विकास हर क्षेत्र में करने हेतु सदैव तत्पर रहेंगे।
कार्यक्रम में नौनिहालों को भारत के महाबली, महायोद्धा महाराणा प्रताप की शूरवीरता,साहस,पराक्रम और उनकी कुशाग्र बुद्धि द्वारा मुगलों के छक्के छुड़ाने के किस्सों में बताया गया कि वीरों की भूमि राजस्थान में जन्मे महान हिंदू राजा महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को कुंभलगढ़ में हुआ था। महाराणा प्रताप ने अपनी मां से युद्ध कौशल की शिक्षा ग्रहण की थी। महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर को पूरी टक्कर दी थी। जबकि महाराणा प्रताप के पास केवल 20 हजार सैनिक थे और अकबर के पास करीबन 85 हजार सैनिकों की सेना थी। इसके बावजूद इस युद्ध को अकबर जीत नहीं पाया था। महाराणा प्रताप के भाले का वजन 81 किलो और छाती के कवच का वजन 72 किलो था।भाला, कवच, ढाल और दो तलवारों के साथ उनके अस्त्र और शस्त्रों का वजन 208 किलो था। महाराणा प्रताप कभी भी मुगलों के सामने झुके नहीं। हर बार उन्होंने मुगलों को मुंह तोड़ जवाब दिया।अकबर ने महाराणा प्रताप से समझौते के लिए 6 दूत भेजे थे,लेकिन महाराणा प्रताप ने हर बार उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया क्योंकि राजपूत योद्धा कभी भी किसी के सामने घुटने नहीं टेकते।महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय घोडे़ का नाम चेतक था। वह घोड़ा भी बहुत बहादुर था। हल्दी घाटी में आज भी चेतक की समाधि बनी हुई है। हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान ही चेतक की मृत्यु हो गई थी। हल्दीघाटी युद्ध के दौरान जब मुगल सेना महाराणा के पीछे पड़ी थी, तब चेतक ने राणा को अपनी पीठ पर बिठाकर, कई फीट लंबे नाले को छलांग लगा कर पार किया था। रात्रि में महिलाओं के द्वारा दीप प्रज्वलित किया गया।कार्यक्रम में लोकेश्वर सिंह राजपूत, बहोरनसिंह राजपूत ,हेमंतगौर,तीर्थराज सिंह राजपूत ,दिलीप सिंह राजपूत पोषणसिंह राजपूत, श्रीमती महेंद्री बाई राजपूत, श्रीमती केशरगौर, कुमारी निभा गौर, ममता राजपूत, शीतला राजपूत, एवं ग्रामीण महिलाएं उपस्थित थे।