दुर्ग। प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग ने कहा था कि जिस तरह मनुष्य प्रकृति का दोहन कर रहा है उससे यह आशंका है कि मनुष्य की प्रजाति इस धरती से अगले 5 सौ सालों में नष्ट हो जाएगी। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा.एपीजे कलाम ने एक बार कहा था कि जिस तरह से धरती पर संसाधन घट रहे हैं हमें आने वाले समय में चांद और मंगल से कच्चा माल मंगाना होगा और इसके लिए हमें अपनी प्रौद्योगिकी को काफी विकसित करना होगा। जाहिर है कि विकास के साथ ही मनुष्य जाति को बचाये रखने की यह चुनौती मैराथन दौड़ जीतने जैसी ही कठिन है। जीवन में यह अनुभव आता है कि प्रकृति चुनौती देती है तो उससे निकलने का रास्ता भी देती है। प्राकृतिक साधनों को अपनाकर आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाकर हम ऐसे साधन विकसित कर सकते हैं जिनसे सहज विकास भी होता रहे और प्रकृति का क्षरण भी रूके ही नहीं अपितु प्रकृति को मलहम भी लगे।
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार ने यही मार्ग अपनाया है। नरवा योजना को लें, इस योजना में जलप्रबंधन की सारी विशेषता हैं और किसी तरह का कोई खतरा अथवा किसानों को नुकसान नहीं। जब पानी बचाने के लिए बड़े बांध बनाते हैं तो इस बात की आशंका होती है कि भूकंप जैसी विपदाएं बढ़ जाएं। एक बार अरूंधती राय ने कहा था कि बिग डैम एवं न्यूक्लियर बम आर वीपन आफ मास डिस्ट्रक्शन। बड़े बांध और न्यूक्लियर बम बड़ी त्रासदी ला सकने वाले हथियार हैं। नरवा योजना में किसानों की सिंचाई संबंधी जरूरतें बिना किसी तरह से प्रकृति को छेड़े अपनाई जा सकती है।
धमधा ब्लाक के लुमती नाला को देखें। ग्रामीण विकास का यह सबसे शानदार और चमकता हुआ उदाहरण है। अपने प्राकृतिक धरोहरों को भूल जाने की कीमत हम चुकाते हैं। बरसों से लुमती नाले में गाद जमती रही और नाले का अस्तित्व ही एक तरह से समाप्त हो गया। नरवा योजना के अंतर्गत 15 किमी फैले इस नाले में गाद निकालने का कार्य आरंभ हुआ। नाले को पुनः संजीवनी प्राप्त हुई। अब नाले में पानी है। नाले में पानी पहुँचने से आसपास के खेतों में भी भूमिगत जल रिचार्ज हुआ है। लुमती नाले से प्रभावित छह गांवों के किसानों को इससे बोरवेल के स्तर में बढ़ोत्तरी का लाभ तो हुआ ही है। शिवनाथ के इस तरफ के गाँवों में भी जलस्तर बढ़ा है।
इसमें मनरेगा के माध्यम से लोगों को रोजगार मिला ही। नाले के किनारे मजबूत किये गये। स्ट्रक्चर में जो टूटफूट थी उसे ठीक किया गया। तीनों ऐसे काम थे जिसमें बहुत कम लागत आनी थी। दुर्ग जिले में 172 नाले हैं नरवा योजना के अंतर्गत सभी का जीर्णोद्धार होने से धीरे-धीरे सिंचाई की समस्या समाप्त हो जाएगी और कभी अच्छा मानसून न भी हो तो भी रिचार्ज भूमिगत जल काम आ जाएगा।
अब यही काम अगर बड़े जलाशयों के माध्यम से होता तो भूमि तो कमजोर होती ही। सैकड़ों एकड़ कृषि भूमि भी इसके दायरे में आ जाती। विद्युत की जरूरतों के लिए बड़े जलाशयों की आवश्यकता भी है लेकिन इनकी जरूरत पूरी होने पर शेष कार्यों के लिए नरवा जैसे स्ट्रक्चर बेहतरीन रूप से उपयोगी हो सकते हैं।
कोई सरकार तब अच्छी होती है जब वो नवाचार अपनाती है। एक छोटा सा अच्छा उपाय ही विकास की बुनियाद बन सकता है। नरवा योजना यही है। पानी का वेग यदि कम हो जाए तो रिचार्ज क्षमता बढ़ जाएगी। इसके लिए बस छोटे-छोटे स्ट्रक्चर बनाने हैं जैसे लूज बोल्डर आदि। यह काम हो रहा है और दुर्ग जिले को सतत विकास का ऐसा माडल मिला है जो भविष्य के लिए आर्थिक विकास की ठोस नींव बनेगा।
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