दक्षिणापथ,नगपुरा/दुर्ग। “संसार दुःख से भरा है। कर्म का परिणाम निश्चित ही है। जो आप देते हैं वो मिलता है। आप सुख देते हैं आपको सुख मिलेगा। दुःख पहुँचाओगे तो आपको भी दुःख मिलेगा। सच्चे धर्मात्मा दूसरों को पीड़ा ना पहुँचे, इसका सतत ख्याल रखता है। संसार का दृश्य बड़ा विचित्र है। कर्म की गति अकल्पनीय है। जो राजा होता है वह रंक बन जाता है। भिखारी राजा बन जाता है। संसार भिखारी को भी रूलाता है। संसार राजा को भी रूलाता है। भिखारी की अपनी समस्या है। राजा का अपनी समस्या है। संसार में समस्या सभी के साथ जुड़ा है। सभी समस्या से जूझ रहे हैं। सबका अपना-अपना दुःख है। इसलिए कबीरदास जी कहते हैं कि संसार में मुझे दुःख से विमुक्त आदमी नहीं मिला। हर एक आदमी अपने आग से जल रहा है।” उक्त उद्गार श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ नगपुरा में चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला में श्री आचारांग सूत्र की व्याख्या करते हुए पूज्य मुनि श्री प्रशमरति विजय जी (देवर्धि साहेब) ने व्यक्त किए।
पूज्य देवर्धि साहेब ने कहा कि आत्मा हमारी स्वयं की है। हमारे आत्मा के बारे में हम कुछ नहीं जानते हैं। अनजान बने हुए हैं। यों कहें जानने की उत्सुकता नहीं है। हमने जितना ज्ञान प्राप्त किया, जितना धर्म का पालन किया, उसे बहुत अधिक मान लेते हैं। हम इतने में ही संतुष्ट हो जाते हैं। आत्मविकास के रास्ते पर चलना है तो असंतोष की आग जलते रहना चाहिए। बहुत कुछ हासिल कर लिए, बहुत कुछ समझ लिया, बहुत कुछ जान लिया सोचकर संतुष्ट मत रहो। अभी बहुत कुछ हासिल करना है, अभी बहुत कुछ समझना है अभी बहुत कुछ जानना बाकी है यह विचार कीजिए। ऐसे विचार से असंतोष जागेगा। असंतोष बनता नहीं है, जगाना पड़ता है। भगवान महावीर स्वामी अपने श्रमण समुदाय को उपदेशित करते हुए फरमाया कि जीव अनादिकाल से भिन्न -भिन्न योनियों में भ्रमण करते हुए मनुष्य का अवतार लिया है। इसके पूर्व पृथ्वीकाय, अपकाय, तेऊकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय जीव के रूप में अनेकों बार जन्म लिए। इन जन्मों का दुःख झेला। इन जन्मों में दुःख दिया। कैसे – कैसे दुःखों का सामना करना पड़ा, इसकी कल्पना करो। मानव जीवन में इन दुःखों का स्मरण पाप से बचने का मार्ग प्रशस्त करता है। पूज्य गुरूदेव श्री ने कहा कि श्री आचारांग सूत्र से हमें शिक्षा मिलती है हमें वही प्राप्त होता है जो हम देते हैं। पानी के जीवों के बारे में विचार करेंगे, उनको दुःख ना पहुँचे इसका ध्यान रखेंगे तो पानी की बचत तो होगी। अपकाय जीवों की विराधना से भी बचेंगे। संसार में मिट्टी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति का उपयोग करना पड़ता है ऐसी दशा में कम से कम उपयोग करें, इसका नियम हो। हमारे कारण जीवों को दुःख पहुँच रहा है उसका प्रतिदिन करूणाभाव से प्रायश्चित करें। विशुद्ध हृदय से क्षमायाचना करें। हमसे हो रहे विराधना, हमसे हो रहे पापों के लिए सोचना होगा। जो सोचता है वही आगे बढ़ पाता है । जो आगे नहीं बढ़ पाया वो पीछे रह जाता है।
श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ में चातुर्मासिक आराधना अंतर्गत श्री पार्श्व प्रभु मोक्ष कल्याणक तप चल रहा है। रविवार प्रातः 9 बजे से देवर्धि साहेब रचित श्री गौतम स्वामी अष्टप्रकारी पूजन की संरचना होगी।
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