श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ नगपुरा में प्रवचन श्रृंखला, मनुष्य का अवतार साधना के लिए है – प्रशमरति विजय जी (देवर्धि साहेब)

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दक्षिणापथ, दुर्ग । “मनुष्य का जन्म मिलना दुर्लभ है। सद्भाग्य से हमें मनुष्य योनि में जन्म मिला है। जन्म होते ही जिन्दगी की शुरूआत हो जाती है। यह शाश्वत् सत्य है कि जिन्दगी शुरू हुई है तो एक ना एक दिन पूरी भी हो जावेगी। इस सत्य को हम सभी जानते हैं हमें मालूम है कि हर किसी को एक दिन मृत्यु के गोद में विलिन होना ही है लेकिन विडम्बना है कि मृत्यु कब होगी ? किस अवस्था में होगी ? और मृत्यु बाद जीव कहाँ जायेगा? यह कोई नहीं जानता। यह तीन सबसे बड़ी समस्या और सबसे बड़ा प्रश्न है । इन तीनों प्रश्न के बारे में हमें सतत् चिंतन करना चाहिए। चिंतन से छोटा सा वैराग्य उत्पन्न होगा जो आगे चलकर हमें पापवृत्ति से बचने में सहायक होगा।” उक्त उद्गार श्री प्रशमरति विजय जी (देवर्धि साहेब) म.सा. ने श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ में चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला में व्यक्त किए में धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए देवर्धि साहेब ने कहा कि वैराग्य से भय उत्पन्न होती है, पापवृत्ति से बचने का भय । भय हमेशा गलत नहीं होता। पाप से भय लगना जीवन को सही दिशा प्रदान करती है। भारत संस्कृति प्रधान देश है, यहाँ अनेकता में एकता है, विभिन्न धर्म के अनुयायी अपने-अपने धर्मपुरूश के द्वारा निर्देशित मार्गदर्शन का अनुसरण करते हैं लेकिन सभी धर्मों की आधारशिला पापवृत्ति से बचने की है। मनुश्य का अवतार साधना के लिए हुआ है। साधना के क्षेत्र में यह महत्वपूर्ण है कि इच्छा जब तक इच्छा रहती है तब तक साधना की शुरूआत नहीं होती। इच्छा जब उत्कंठ बन जाती है तो समझना साधना की तैयारी शुरू हो गई। अनादि काल से जीव भवभ्रमणा में है। जन्म-मरण का चक्र अनवरत जारी है। ज्ञानी भगवंतों ने बतलाया है कि जीव के भवभ्रमणा के पीछे पाँच मुख्य कारण है। पहला शुभ विचार ना होना, दूसरा शुभ विचार तो है लेकिन बहुत कम है, तीसरा शुभ विचारों की तीव्रता ना होना, चौथा अशुभ विचार बहुत अधिक और पाँचवां अशुभ विचारों की तीव्रता बहुत ज्यादा है। ये पाँच सामान्य कारण है जिसके परिणाम स्वरूप जीव विभिन्न योनियों में भटकते रहते हैं। जीवन है तो समस्या है लेकिन समस्या की चर्चा करने से तकलीफों की चर्चा करने से उसका निदान नहीं होगा। समस्या के निदान के लिए समस्या के कारणों को जानना होगा। किन कारणों से समस्या पैदा हुई है, होती है, उन कारणों को दूर करने का प्रयास करना बुद्धिमता है।
आज के व्याख्यानमाला में पूज्य मुनि भगवंत ने भगवान महावीर के प्रथम शिष्य प्रातः स्मरणीय श्री गौतम स्वामी जी के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कहा कि श्री गौतम स्वामी के आगे “प्रभु” विशेषण पढ़ने को मिलता है, हम नित्य “मंगलम् भगवान वीरो- मंगलम् गौतम प्रभु” कहते हैं। प्रभु का तात्पर्य परमात्मा भगवान का पर्यायवाची कहा जा सकता है। जिस गुरु भगवंत को प्रभु माना गया है। भगवान महावीर स्वामी प्रतिदिन दो प्रहर की देशना (प्रवचन) में सबसे अधिक नाम गौतम स्वामी का लेते हैं । परमात्मा महावीर वीतराग प्रभु के मुख में जीवनपर्यंत प्रतिदिन गौतम स्वामी का नाम उच्चारित हुआ, ऐसे गुरू गौतम स्वामी का जीवन पढ़ने से, श्री गौतम स्वामी के नाम स्मरण से मंगल ही मंगल होता है। श्री गौतम स्वामी जी के जीवन चरित्र का चिंतन हमें भवभ्रमणा से दूर करने में सहायक बनता है। चातुर्मास में प्रतिदिन श्री गौतम कथा के अंतर्गत ऐसे महापुरूष के जीवन का चिंतन करेंगे। श्री गौतम स्वामी का छोटा सा गुण भी हममें आ जाये तो समझना मानव जीवन सार्थक हो गया।

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