नगपुरा/दुर्ग। आरोगयम् नगपुरा के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा दानेश्वर टंडन ने बिलासपुर से आरोग्यम् अवलोकन एवं परिभ्रमण करने आए चिकित्सा छात्रों से परिचर्चा में बताया कि एक ओर हम आज रोगोपचार की दिशा में बहुत आगे है वही हम अनियमित दिनचर्या ओर अनावश्यक पदार्थों के सेवन के कारण अस्वस्थता का तेजी शिकार हो रहे हैं ! साधारण इंसान विचारों और भावनाओं के तनाव, खाने-पीने की अनियमितता और वातावरण के प्रदूषण के कारण दु:ख-दर्द, अशान्ति, शारीरिक और मानसिक पीड़ाओं के अन्तहीन गर्त में गिरता जा रहा है।
सबसे बड़े दु:ख की बात तो यह है लोग संयम, साधना और योग विवेक से संभलने के बजाए भेड़ चाल की तरह उसमें गिरते ही जा रहे हैं। हमारे जीवन में (आधुनिक समय में) सफलता का ग्राफ जितना ऊँचा होता जा रहा है, स्वास्थ्य का ग्राफ उतना ही अधिक नीचे जा रहा है। इसका एकमात्र कारण है। मानव में प्रकृति से दूर और बनावटी तड़क-भड़क दिखावे के नजदीक जाने की प्रवृत्ति का विकास होना। एक दिन के बच्चे को भी हाथ-पैर मारने के बाद जब भूख लगती है तो वह अपना हाथ अपने मुंह की ओर ले जाता है। यह प्रकृति जन्य स्वभाव है।उसे किसी ने नहीं सिखाया कि दूध मुंह से पिया जाता है,! प्रकृति ने हमारे शरीर के भीतर ही दवाइयों का निर्माण किया है। हमारे शरीर में ऐसी व्यवस्था है कि जिसके द्वारा अपने आप सभी अंगो की संभाल और सुचारू रूप से संचालन होता रहता है। हमारे शरीर में विद्यमान एन्डोक्राईन यह एक प्राकृतिक दर्द निवारक है।
इसका निर्माण हमारे शरीर में ही होता है जो कि मोरफीन से कही अधिक ताकतवर है। पहले के जमाने में लोग दवाइयाँ खाते थे, परन्तु आजकल लोगों को दवाइयाँ खा रही है। जिससे धीरे-धीरे हमारा शरीर दु:खी, मन उदास और आत्मा हताश हो गई है। सम्पूर्ण स्वास्थ्य, असीम ऊर्जा, दमकता हुआ सौन्दर्य, परम आनन्द.. यह सब मनुष्य के जन्मसिद्धअधिकार है। जीवन में यही ऊर्जा, स्वास्थ्य और सौन्दर्य के आनन्द की कमी का एकमात्र कारण है- मनुष्य के द्वारा बनाये गये ” मानसिक अवरोध” !!! गिरने से चोट लगना, जख्म, फोड़े-फुंसी होना, हड्डी टूटना आदि के अलावा बाकी सभी बीमारियों की उत्पत्ति मनुष्यों के विचारों के कारण एवं ऊर्जा मंडल की साफ -सफाई नहीं करने के कारण होती है। केवल 10त्न बीमारी शारीरिक हैं, बाकी 90त्न मानसिक रोग ही कुछ समय बाद शरीर पर दिखने लगते हैं।मानसिक अवस्था का कितना सम्बन्ध शारीरिक दु:खों से है, इस बात से सिद्ध हो जाता है कि मनुष्य कांटे की चुभन को भी नहीं सह सकता है और दूसरा व्यक्ति हंसते-हंसते देश के लिए फांसी पर चढ़ जाता है। गोलियों से अपना शरीर छलनी कर लेता है और एक उफ…! तक नहीं करता है।
हमारा शरीर जिन पाँच तत्वों पर आधारित है, उसकी एनर्जी जब असन्तुलित हो जाती है तब ही हम अपने आप को विभिन्न प्रकार की मानसिक तकलीफों से घिरा हुआ पाते है। प्राकृतिक चिकित्सा एक प्रकार से हमारे जीवन जीने की ढंग का पु:न अभ्यास हैं। इस पध्दति से हम आहार योग प्राणायाम आदि षठ क्रियाओ का अभ्यास कर सप्तचक्रो को जागृत कर सकते हैं। इस चिकित्सा पद्धति द्वारा मनुष्य, जीवन की सारी तकलीफों, सभी बुराइयो एवं रुकावटों को दूर करके, अपने अन्दर छिपी हुई सभी प्रतिभाओं, सम्भावनाओ को बाहर निकालकर अपने आत्मविश्वास को जागृत कर स्वस्थ जीवन का लाभ ले सकते हैं।