दुर्ग। सामाजिक स्वाध्याय के प्रबल प्रेरक वयोवृद्ध संत पूज्य गुरुदेव श्री शीतल मुनि जी महाराज ने जय आनंद मधुकर रतन भवन में आयोजित आध्यात्मिक प्रवचन श्रृंखला को संबोधित करते हुए कहा तीर्थंकर परमात्मा की परसना एक समान होती है जो वर्तमान में तीर्थंकर है, जो पूर्व में तीर्थंकर और आने वाले समय में जो तीर्थंकर होंगे उन सभी तीर्थंकरों की सभी क्रियाविधि एक समान होती है।
संत श्री ने आगे कहा संसार के जितने भी जीव हैं उन जीवों को मारना नहीं कष्ट नहीं देना ऐसा धर्म ही शुद्ध और सात्विक धर्म है अहिंसा संयम तप धर्म की आराधना में मन लग जाए तो ऐसी सेवा भक्ति को देवता भी आकर नमन करते हैं। जहां अहिंसा वह धर्म है ओर जहां हिंसा है वह महापाप है।
धर्म की आड़ में एकेद्रिय जीव से लेकर पंचेेंद्री जीव तक मन वचन काया से किसी को पीड़ा हो ऐसा कार्य कभी नहीं करना चाहिए यही पाप है। महान पुण्य से साधना आराधना के कारण हमें यह धर्म मिला है यह बात हमें हमेशा समझनी चाहिए। पूरे विश्व में साडे 25 आर्य देश हैं और आर्य क्षेत्र में जन्म लेना बहुत पुण्य प्रताप से मानव जन्म मिला है। इसकी महत्ता को समझते हुए हमें सद कार्य करना चाहिए।
सभी जीवो के प्रति करुणा भाव दया भाव हमें सत्य मार्ग की ओर ले जाते हैं अपने अपने कर्म के आधार पर एक केंद्रीय से लेकर पंचेेंद्रीय तक अलग-अलग जीवन मिलता है।
जय आनंद मधुकर रतन भवन की धर्म सभा को संबोधित करते हुए पूज्य गुरुदेव शीतल राज जी महाराज ने कहा दोषमुक्त सामायिक करना अनंत जीवो की रक्षा करने के संकल्प के साथ समय की आराधना से अनेक पुण्य का बंध होता है।
जिसकी हिंसा से बचने की भावना होगी वही व्यक्ति सामायिक की साधना कर सकता है। पुण्य बढ़ाने के लिए शुद्ध साधना का होना अत्यंत आवश्यक है समय की साधना से जो कल मिलते हैं वह फल अन्य किसी साधना से नहीं मिलते।
पाप के आने का मार्ग जाने बिना समय की साधना कभी नहीं हो सकती समय के साथ और भी तप की साधना होती है। पाप का त्याग करने की भावना से शुद्ध सामायिक होती है। गुरुदेव ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए छोटे-छोटे उदाहरण से धर्म ध्यान करने की प्रेरणा दी।
–जय आनंद मधुकर रतन भवन में तपस्याओं का ठाठ
श्रीमती किरण देवी संचेती मास खमण की तपस्या से आगे चल रही है। इसी तरह श्रीमती सपना संचेती , आकाश लुणावत उपवास मासक्षमण की तपस्या की ओर अग्रसर है। श्रीमती काजल बोहरा, श्रीमती झंकारी देवी मेहता अमर चंद आशीष कुमार बेगानी तपस्या की ओर अग्रसर है।
-होगी सामूहिक दया का आयोजन
गुरुदेव शीतल राज जी महाराज के सानिध्य में चातुर्मास लगने के बाद से ही प्रत्येक रविवार को 11 सामायिक की आराधना दया के रूप में की जाती रही है लगभग 100 से अधिक लोग रविवार को सामूहिक दया के आयोजन में भाग लेते हैं और समायिक की आराधना करते हैं।
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