नगपुरा /दुर्ग । “हर मनुष्य का अपना व्यक्तिगत धर्म दर्शन है। हमें अपने ही धर्म का अनुकरण और अनुमोदन करना होता है। विश्व के सारे धर्म हमारे अपने हैं, पर आत्म धर्म से बढ़कर दुनिया का कोई धर्म नहीं है। दूसरे लोग हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं. पर मार्ग संचालन का उत्तरदायित्व तो स्वयं व्यक्ति पर है ।” उक्त उद्गार तपोभूमि श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ नगपुरा में चातुर्मासार्थ विराजित विदूषी साध्वी श्री मुक्तिप्रिया श्री जी म सा ने रविवारीय प्रवचन श्रृंखला में व्यक्त किए।
धर्मसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अस्तित्व जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार करना जीवन का परम विज्ञान है। मानसिक तनाव एवं जीवन भटकाव स्वयं की भूमिका की अस्वीकृति के कारण है। मनुष्य सुख-सुविधाओं का इतना चाही (आदी) है कि हर असफलता और प्रतिकूलता उसका जीना हराम कर देती है। जीवन का यथार्थ सुख तनाव शून्यता में है। जीवन में अपेक्षा मनोकर्म की नहीं ,,मनोयोग की है।
मनोयोग हैं- मन की एकाग्रता !! मन सुविधावादी है, अवसरवादी है। अच्छे विचार और बुरे विचार की प्रतिस्पर्धा का विरोधी है यह जो भी चीज उसे अपने अनुकूल लगेगी या उसके साथ ही रहना चाहता है। मन के विचार ही हमें एक क्षण में श्रेष्ठता के शिखर पर पहुंचा देते हैं तो पल भर में हमें पतन की गहराईयों में भी धकेल देते हैं। ऐसे में अशांत एवं चंचल मन को स्थिर और नियंत्रण में रखना बहुत आवश्यक है। जो लोग मन को नियंत्रित नहीं कर पाते , उनके लिए यह शत्रु के समान कार्य करता है। मनुष्य का मन वायु और प्रकाश की गति से भी अधिक गतिमान रहता है। हमारे ग्रंथों में उल्लिखित है कि मन ही मनुष्य को सांसारिक बंधनो में बांधता है और मन ही उन बंधन से मुक्ति दिलाता है।
आज हितेशभाई संघवी मुम्बई की ओर से पंचकल्याणक पूजा रचना की गई। धर्मसभा में सुप्रसिद्ध विधिवेत्ता हर्षित भाई टोलिया (एडव्होकेट) अहमदाबाद, आनंद चौरडिया एडव्होकेट बालाघाट सुभाष भाई दोशी मुम्बई समकित भाई शाह सूरत, मयूरभाई गांधी अहमदाबाद, आरोग्यम् के सी.एम.ओ डॉ दानेश्वर टण्डन, आर.एम.ओ. डॉ. पूजा भेसले, सतीष -सौरभ गोलछा, अश्विनभाई संघवी सहित छत्तीसगढ़ के अंचल के सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित थे।