2012 में अनुसूचित जनजाति वर्ग के आरक्षण का मामला उच्च न्यायालय बिलासपुर में पहुंचा, उस समय छत्तीसगढ़ में भाजपा की डॉ. रमन सिंह की सरकार थी। भाजपा की सरकार ने अपना पक्ष तो जरूर रखा लेकिन नियमानुसार शपथ पत्र नहीं दिया कि आरक्षण 32% ही रहनी चाहिए। प्रदेश में इस मुद्दे पर गरमा रही राजनीति के बीच 17 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ सरकार की कैबिनेट की बैठक होने जा रही है, जिसमें इस पर गंभीर मंत्रणा की जाएगी। सूत्रों के अनुसार इस विस सत्र में एक शासकीय संकल्प लाया जाएगा जिसमें छत्तीसगढ़ के अनुसूचित जनजाति वर्ग को 32% आरक्षण देने का प्रावधान किया जाएगा। सूत्र बता रहे हैं कि सरकार सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली में अपील दायर किए जाने का निर्णय ले सकती है।
आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने बताया कि 17 अक्टूबर को होने वाली कैबिनेट की बैठक में छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति वर्ग को 32% आरक्षण पुनः बहाल करने की बात को लेकर विधानसभा का विशेष सत्र आमंत्रित किया जाएगा। उन्होंने पत्रकारों से कहा कि आरक्षण के मामले को तत्कालीन भाजपा सरकार ने अच्छे से कोर्ट में नहीं रखा इसलिए आदिवासी समाज को नुकसान हुआ। अब अच्छे वकीलों कपील सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी के माध्यम से इसे कोर्ट में रखा जाएगा। हम भी चाहते हैं कि आदिवासी समाज को 32 प्रतिशत आरक्षण मिले।
2012 में हाईकोर्ट गया था आरक्षण का मामला
दरअसल 19 सितंबर 2022 को उच्च न्यायालय बिलासपुर से इस संबंध में फैसला आया कि अनुसूचित जनजाति वर्ग का 32% का आरक्षण, शासन के रिकॉर्ड देखने के बाद 20% किया जाता है एवं अनुसूचित जाति का आरक्षण जनसंख्या के आधार पर 12% से बढ़ाकर 16% किया जाता है। वहीं ओबीसी वर्ग का आरक्षण 14% किया गया।