जम्मू । जम्मू-कश्मीर में इस साल के अंत या फिर अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। चुनाव आयोग ने हालांकि अभी तक तारीखों का ऐलान नहीं किया है, लेकिन घाटी की सियासत में कुछ बदलाव के संकेत मिलने लगे हैं। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला की नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के तेवर एक-दूसरे के लिए बदले हुए दिख रहे हैं। हाल ही में उमर अब्दुल्ला और जम्मू-कश्मीर बीजेपी के अध्यक्ष रविंदर रैना ने एक-दूसरे की खुलकर तारीफ की थी। अब उनके पिता ने नरेंद्र मोदी सरकार को लेकर जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की मुखिया महबूबा मुफ्ती से अलग अपनी राय व्यक्त की है। ‘रघुपति राघव राजा राम’ गीत को सांप्रदायिक करार देते हुए महबूबा मुफ्ती ने कहा था कि केंद्र सरकार कश्मीर में अधिकारों को छीनने के बाद अब हिंदुत्व का अजेंडा थोप रही है। वहीं, इस मामले पर फारूक अब्दुल्ला की अलग राय है। उन्होंने पूछा है कि आखिर भजन गाने गलत क्या है। उन्होंने कहा कि मैं खुद भी भजन गाता हूं और इससे हिंदू नहीं हो जाता। उन्होंने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और यहां कोई हिंदू अजमेर दरगाह जाने से मुसलमान नहीं हो जाता है। आपको बता दें कि स्कूलों में महात्मा गांधी की 153वीं जयंती से पहले पर इस गीत को गाने का आदेश दिया गया है। यह गीत महात्मा गांधी अकसर गुनगुनाते थे और उनकी सभाओं में भी यह गाया जाता था। ईश्वर, अल्लाह तेरो नाम जैसी इसकी पंक्तियों को सांप्रदायिक एकता के लिए अहम माना जाता रहा है। उमर अब्दुल्ला और रविंदर रैना ने एक-दूसरे की खुलकर तारीफ की थी। रैना ने उमर अब्दुल्ला को केंद्र शासित प्रदेश के शीर्ष राजनीतिक नेताओं में एक रत्न करार दिया था। रैना ने कहा था, “जब मैं उमर अब्दुल्ला के साथ विधानसभा का सदस्य बना तो हमने एक इंसान के रूप में देखा कि उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के शीर्ष राजनीतिक नेताओं में एक रत्न हैं। इसलिए हम दोनों दोस्त भी हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि जब वह कोरोना से संक्रमित हुए थे तो उनका हाल जानने वालों में उमर अब्दुल्ला पहले व्यक्ति थे। उन्होंने फोन कर उनका हाल जाना था। रैना के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए उमर अब्दुल्ला ने एक ट्वीट किया। उन्होंने कहा कि राजनीतिक रूप से असहमत होने पर राजनेताओं को व्यक्तिगत रूप से एक-दूसरे से नफरत करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने सिलसिलेवार ट्वीट में कहा, “राजनीति विभाजन और नफरत के बारे में क्यों है? राजनीति यह कहां कहता है कि राजनीतिक रूप से असहमत होने के लिए हमें व्यक्तिगत रूप से एक-दूसरे से नफरत करनी होगी? मेरे राजनीतिक विरोधी हैं, मेरे दुश्मन नहीं हैं।” उन्होंने कहा, “मैं रविंदर रैना के इन शब्दों के लिए आभारी हूं। मुझे खुशी है कि ये शब्द हमें एक-दूसरे का विरोध करने से नहीं रोकेंगे। पहले रविंदर रैना और उमर अब्दुल्ला की एक-दूसरे की तारीफ और अब मोदी सरकार को लेकर महबूबा के स्टैंड से अलग फारूक अब्दुल्ला के बयान से कश्मीर की राजनीति को लेकर नए संकेत दिख रहे हैं। आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले दोनों दल गठबंधन कर सियासी पंडितों को चौंका सकते हैं।
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