नई दिल्ली । केंद्र सरकार के चावल निर्यात पर रोक लगाने के बाद भारतीय निर्यातकों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। दरअसल विदेशी चावल खरीदारों ने अतिरिक्त शुल्क चुकाने से इनकार कर दिया है, जिसके बाद भारतीय पोर्ट पर करीब 10 लाख टन चावल की खेप फंस गई है। मोदी सरकार ने घरेलू बाजार में चावल की कीमतें बढ़ने से रोकने के लिए निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था, इस विदेशी बाजार में भेजने पर 20 फीसदी अतिरिक्त शुल्क चुकाना होगा। निर्यातकों ने बताया कि विदेशी खरीदारों ने चावल आयात पर 20 फीसदी अतिरिक्त शुल्क चुकाने से इनकार कर दिया है। अब हमारे 10 लाख टन चावल पोर्ट पर ही फंस गए हैं। भारतीय चावल निर्यातक संगठन के अध्यक्ष बीवी कृष्ण राव का कहना है कि सरकार ने तत्काल प्रभाव से शुल्क लगा दिया लेकिन खरीदार इसके लिए तैयार नहीं थे। फिलहाल हमने चावल का लदान रोक दिया है। दुनिया के सबसे बड़े चावल निर्यातक देश भारत के रोक लगाने के बाद अब पड़ोसी देशों सहित दुनियाभर के चावल आयातक देशों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। यह रोक मानसून की बारिश कम होने और घरेलू बाजार में सप्लाई में कमी आने से रोकने के लिए लगाई गई है। भारत हर माह करीब 20 लाख टन चावल का निर्यात करता है। इसमें सबसे ज्यादा लोडिंग आंध्र प्रदेश के पूर्वी पोर्ट ककिनडा और विशाखापत्तनम से होती है। देश के सबसे बड़े चावल निर्यातक ने बताया कि अमूमन सरकार निर्यात पर रोक लगाने के बावजूद पहले से करार हुए चावल को भेजने की अनुमति दे देती थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि चावल के कारोबार में अब मार्जिन काफी कम रह गया है, लेकिन निर्यातक 20 फीसदी का अतिरिक्त शुल्क नहीं झेल सकते हैं। लिहाजा सरकार को पहले से करार हुए चावल को बाहर भेजने की अनुमति देनी चाहिए। दरअसल, इस साल गेहूं निर्यात पर रोक लगाने के बावजूद सरकार ने पहले से हुए करार को भेजने की इजाजत दी थी। निर्यातकों ने बताया है कि प्रतिबंध के बाद पोर्ट पर करीब 7.5 लाख टन सफेद चावल फंसे पड़े हैं, जिन पर 20 फीसदी अतिरिक्त शुल्क चुकाया जाना है। इसके अलावा 3.5 लाख टन टूटे चावल की खेप भी देश के कई पोर्ट पर फंसी पड़ी है। मौजूदा हालात में आयातकों ने भी 20 फीसदी शुल्क देने से इनकार कर दिया है और अब यह खेप विदेश में भेजने में काफी मुश्किलें आ रही हैं। भारतीय पोर्ट पर फंसे चावल का निर्यात चीन, सेनेगल जैसे देशों को होना था। इसमें सबसे ज्यादा शिपमेंट टूटे चावल की थी।वहीं, बेनिन, श्रीलंका, टर्की और यूएई को सफेद चावल का निर्यात किया जाना था। निर्यातकों ने सरकार से पहले से करार हुए चावल को भेजने की अनुमति देने की मांग की है।इसमें 7.5 लाख टन सफेद चावल और 5 लाख टन टूटे चावल की खेप शामिल है।
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