वॉशिंगटन। भले ही वैज्ञानिकों ने सौर मंडल के बारे में काफी जानकारी हासिल कर ली हैं, लेकिन फिर भी हमारा ब्रह्मांड रहस्यों से भरा हुआ है। शुक्रवार को वैज्ञानिकों ने अनुमान जताया कि संभवतः पूरे अंतरिक्ष में अलग-अलग ग्रहों पर हीरों की बारिश होती है। वैज्ञानिकों का यह अनुमान यूरेनस और नेपच्यून पर होने वाली अजीबो गरीब बारिश पर आधारित था। पहले भी वैज्ञानिक यह बता चुके हैं कि ‘बर्फीले ग्रहों’पर अत्यधिक उच्च दवाब और तापमान हाइड्रोजन और कार्बन को ठोस हीरे में बदल देता है। नए शोध में पाया गया है कि ‘हीरों की बारिश’ हमारी सोच से अधिक सामान्य हो सकती है। नेपच्यून और यूरेनस जैसे बर्फीले ग्रहों को हमारे सौर मंडल के बाहर के ग्रहों का सबसे सामान्य रूप माना जाता है। इसका मतलब है कि हीरों की बारिश पूरे ब्रह्मांड में हो सकती है। हीरे की वर्षा पृथ्वी पर बारिश की तुलना में काफी अलग है। वैज्ञानिकों ने हीरों के बनने की प्रक्रिया को समझाने के लिए पीईटी प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जिसे पानी की बोतलों और फूड पैकेजिंग में इस्तेमाल किया जाता है। टीम ने कैलिफोर्निया में एसएलएसी नेशनल एक्सेलेरेटर लेबोरेटरी में कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सिजन का मिश्रण- पीईटी प्लास्टिक पर एक हाई-पावर वाला ऑप्टिकल लेजर डाला। बेहद हल्की एक्स-रे चमक में उन्हें नैनोडायमंड के बनने की प्रक्रिया देखने को मिली। हालांकि इन छोटे हीरों को नग्न आंखों से देखना बहुत मुश्किल था। उन्होंने बताया कि ग्रहों पर बड़ी मात्रा में मौजूद ऑक्सीजन कार्बन से हाइड्रोजन परमाणुओं को अलग करने में मदद करती है। इस प्रक्रिया में ही हीरों का निर्माण होता है। यह प्रयोग नैनोडायमंड के निर्माण के एक नए तरीके की ओर इशारा करता है। हालांकि हीरों की बारिश अभी भी एक काल्पनिक चीज बनी हुई है क्योंकि यूरेनस और नेपच्यून के बारे में बहुत कम जानकारी है जो हमारे सौर मंडल के सबसे दूर के ग्रह हैं। दरअसल दोनों ही ग्रहों पर मीथेन गैस मौजूद है जिसमें कार्बन होता है। वायुमंडलीय दबाव बहुत ज्यादा होने के कारण मीथेन से कार्बन कई बार अलग हो जाता है और भारी दबाव के कारण ये क्रिस्टल बनने लगते हैं, जो एक हीरा होता है।
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