वॉशिंगटन । अमेरिका में ‘एलियन केंचुए’ पाए जाते है। इन केचुए में से ज्यादातर केंचुओं की उत्पत्ति विदेशों में हुई है। इसलिए, इन्हें एलियन केंचुए कहा जाता है। प्लेइस्टोसिन हिमयुग में ग्लेशियरों की वजह से अमेरिकी केंचुए लगभग समाप्त हो गए थे। लेकिन आज, पेन्सिलवेनिया के उत्तर में पाए जाने वाले केंचुओं की लगभग सभी प्रजातियां बाहरी हैं। 1600 के दशक में, यूरोप में बसने वाले शुरुआती लोगों के साथ, नए केंचुए उत्तरी अमेरिका की ओर पलायन करने लगे। वे जहाज गिट्टी या पेड़-पौधों की जड़ों के ज़रिए वहां पहुंचे। यूरोपीय केंचुए बगीचों और जंगलों की ऊपरी मिट्टी में खूब फले फूले।
अगर कोई देशी केंचुए होते, तो वे ज़मीन के अंदर रहते।हालांकि किसान तो यही चाहते हैं कि उनकी मिट्टी में केंचुए हों। लेकिन, विडंबना यह है कि केंचुओं की जो खासियत बगीचों के लिए फायदेमंद है, वही उन्हें जंगलों के लिए खतरनाक बनाती हैं। वे खेती की मिट्टी में वायु का संचार करने में मदद करते हैं, जिससे पौधों को पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं। लेकिन जंगल के मामले में थोड़ा फर्क है। जंगल में केंचुए जब यही काम करते हैं तो वहां कटाव होता है। इस प्रक्रिया से न सिर्फ जंगल को खतरा होता है, बल्कि पक्षियों और लोगों के लिए भी खतरा हो सकता है। एसईआरसी के वैज्ञानिकों ने इन विदेशी केंचुओं के रहस्य जानने के लिए शोध किया। टीम ने पाया कि केंचुओं के लिए युवा वन सबसे ज्यादा अनुकूल होते हैं। केंचुए वहां के पेड़ों के पत्तों के कूड़े को पसंद करते हैं, जैसे कि ट्यूलिप और पॉपलर। जबकि पुराने जंगलों में ओक, बीच और हिकॉरी पेड़ों की पत्तियों का कूड़ा उन्हें कम स्वादिष्ट लगता है। इसका मतलब है कि पुराने जंगल हटाकर, मनुष्य अनजाने में केंचुओं और बाकी आक्रामक प्रजातियों के लिए जमीन की संवेदनशीलता को बढ़ा देते हैं।एक और अहम मुद्दा है- जलवायु परिवर्तन।
पृथ्वी पर 2.5 ट्रिलियन टन मिट्टी में कार्बन मौजूद है। शोधकर्ताओं का मानना है कि जब केंचुए मिट्टी को मथते और चबाते हैं, तो मिट्टी में कार्बन जमा करने की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि वे फायदेमंद हैं या हानिकारक। चीजें डीकंपोज़ होकर वातावरण में सीओ2 छोड़ती है। केंचुए कम समय में ही इस प्रक्रिया को तेज करने लगते हैं। वे लकड़ी और पत्तियों के कूड़े के डीकंपोज़ीशन को तेज कर देते हैं, जिससे माइक्रोब्स पहले से ज्यादा सीओ2 छोड़ने लगते हैं।हालांकि, टीम का मानना है कि लंबे समय के हिसाब से देखा जाए तो इसका असर ठीक उल्टा हो सकता है। केंचुए जिस मिट्टी को खाते हैं उसे कास्ट के रूप में बाहर निकाल देते हैं। ये सामान्य मिटटी के मुकाबले थोड़ी कठोर गोलियों के रूप में दिखती हैं।
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