नई दिल्ली । शिशु के लिए मां के दूध का विकल्प नहीं होता पर बाजारबाद ने इसे भी संभव बना दिया है आप कुछ भी खरीद सकते हैं। यहां तक कि मां का दूध भी। भारत में एशिया की इकलौती ऐसी कंपनी है, जो मां का दूध बेचती है। यह बेंगलुरु बेस्ड कंपनी नियोलैक्टा लाइफसाइंसेज प्राइवेट लिमिटेड है। कई एक्टिविस्ट्स द्वारा मां के दूध के व्यापार पर आपत्ति जताने के बाद भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने कंपनी का लाइसेंस रद्द कर दिया। एफएसएसएआई ने कहा कि नियमों के तहत मां के दूध की बिक्री की अनुमति नहीं है। हालांकि, एक एफएसएसएआई निरीक्षण से पता चला कि कंपनी नवंबर 2021 में अपने उत्पाद ‘नारीक्षीरा’ (मां का दूध) के लिए आयुष लाइसेंस प्राप्त करके यह दूध बेचना जारी रखे हुए है। नियोलैक्टा की स्थापना साल 2016 में हुई थी। कंपनी ने मूल रूप से डेयरी उत्पादों की श्रेणी में एफएसएसएआई के कर्नाटक कार्यालय से लाइसेंस प्राप्त किया था। ब्रेस्टफीडिंग प्रमोशन नेटवर्क ऑफ इंडिया की नूपुर बिड़ला ने कहा, “यह पूरी तरह से चौंकाने वाला है कि एक कंपनी को युवा माताओं से दूध इकट्ठा करने और उसे एक डेयरी उत्पाद की तरह बेचने की अनुमति दी जा रही है।”
नियोलैक्टा के एमडी सौरभ अग्रवाल ने टीओआई को बताया कि कंपनी को ऑस्ट्रेलिया में पहला दूध बैंक स्थापित करने के लिए मानव दूध की आपूर्ति करने वाली तकनीक का अनुभव है। उन्होंने कहा कि नियोलैक्टा ने पिछले पांच वर्षों में 450 अस्पतालों में 51,000 से अधिक प्री-मैच्योर बच्चों को फायदा पहुंचाया है।” दान किए गए मां के दूध का उपयोग मुख्य रूप से प्री-मैच्योर या बीमार बच्चों को पिलाने के लिए किया जाता है। जब माताएं कई कारणों से बच्चों को अपना दूध पिलाने में असमर्थ होती हैं, तो यह दूध उनके काम आता है। आमतौर पर, दूध गैर-लाभकारी के रूप में स्थापित दूध बैंकों के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। डोनर्स (स्तनपान कराने वाली माताओं) से एकत्र किए गए दूध को पाश्चुरीकृत किया जाता है, पोषक तत्व की मात्रा के लिए विश्लेषण किया जाता है और किसी भी प्रकार के अतिरिक्त तत्व की जांच की जाती है और फिर इसे कम तापमान पर सुरक्षित रखा जाता है। अधिकांश मिल्क बैंक्स में विशेष रूप से सरकारी अस्पतालों से जुड़े बैंकों में प्राप्त हुए दूध को मुफ्त में जरूरतमंदों को दिया जाता है। हालांकि, कई अन्य मिल्क बैंक्स में यह कुछ गरीब जरूरतमंदों को मुफ्त दिया जा सकता है, लेकिन जो इसे अफोर्ड कर सकते हैं, उन्हें आमतौर पर दान किए गए 50 मिलीलीटर मां के दूध के लिए कुछ सौ रुपये देने होते हैं। भारत में 80 से अधिक गैर-लाभकारी मानव दूध बैंक हैं।
नियोलैक्टा 300 एमएल फ्रोजन ब्रेस्ट मिल्क के लिए 4,500 रुपये चार्ज करती है। एक प्री-टर्म बच्चे को प्रति दिन लगभग 30 मिलीलीटर दूध की आवश्यकता हो सकती है, जबकि एक स्वस्थ बच्चे को प्रति दिन 150 मिलीलीटर तक की भी आवश्यकता हो सकती है। यह कंपनी मानव दूध का पाउडर भी बेचती है, जो ई-कॉमर्स साइटों के साथ-साथ कंपनी के खुद के प्लेटफॉर्म पर भी आसानी से उपलब्ध है।
नेशनल नियोनेटोलॉजी फोरम (एनएनएफ) के अध्यक्ष डॉ सिद्धार्थ रामजी ने बताया, “एक सिद्धांत के रूप में हम मां के दूध के व्यावसायीकरण का समर्थन नहीं करते हैं।” लेकिन एनएनएफ एक नियामक निकाय नहीं था। वहीं, ह्यूमन मिल्क बैंकिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. सतीश तिवारी ने इसे शर्मनाक बताया। उन्होंने कहा, क्या कंपनी उन माताओं को भुगतान करती है जो डोनर्स हैं? क्या वे इसे मुफ्त में लेते हैं और इतनी ऊंची कीमत पर बेचते हैं? कोई नहीं जानता। सरकार को इस पर गौर करना चाहिए।” बीपीएनआई ने फरवरी 2020 में स्वास्थ्य मंत्रालय को लिखा था, “नियोलैक्टा मानव दूध के व्यावसायीकरण में शामिल रही है। बीपीएनआई ने कहा, “डीएचएम (दान किया हुआ मानव दूध) का उपयोग किसी भी व्यावसायिक उद्देश्य के लिए नहीं किया जा सकता है”। मंत्रालय के जवाब नहीं देने पर बीपीएनआई ने एफएसएसएआई को पत्र लिखकर पूछा कि लाइसेंस कैसे जारी किया गया।
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