नयी दिल्ली | राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने खुले मैदान में सीवर छोड़ने के मुद्दे पर चुनाव आचार संहिता लागू होने का हवाला देने पर आगरा विकास प्राधिकरण को कड़ी फटकार लगाते हुये कहा कि उसका यह बहाना अप्रांसगिक है। जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अगुवाई में एनजीटी की मुख्य पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी। आगरा के नालंदा टाउन से निकला 1.45 लाख लीटर गंदा पानी खुले मैदान में निकाले जाने के खिलाफ आगरा विकास प्राधिकरण की शिकायत की गई थी।
आगरा विकास प्राधिकरण ने एनजीटी के समक्ष दलील दी थी कि हाल में संपन्न हुए उत्तर विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव आचार संहिता लागू किए जाने की वजह से वह काम नहीं कर पाया।
इस पर एनजीटी ने कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि यह अप्रासंगिक बहाना है क्योंकि उसकी निष्फलता बहुत लंबे समय से जारी है।
एनजीटी ने इस मामले में एक पैनल का गठन किया था, जिसने 22 फरवरी को बताया कि नाले का निपटान पर्यावरण के नियमों के अनुकूल नहीं किया जा रहा है।
एनजीटी ने अपने आदेश में कहा है कि यह गैर विवादित तथ्य है कि सीवेज को खुले मैदान में छोड़ा जा रहा है, जो जल अधिनियम 1974 का उल्लंघन और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ है।
एनजीटी ने इसके लिए आगरा विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया और कहा कि प्राधिकरण को अंतरिम मुआवजे के रूप में जिलाधिकारी के पास 25 लाख रुपये जमा कराने होंगे। यह रकम पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई करने में इस्तेमाल की जाएगी।
एनजीटी ने साथ ही कहा कि उक्त टाउनशिप जरूरी बुनियादी ढांचे के बिना विकसित की गयी लगती है। इसे निर्मित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये थी।
एनजीटी ने कहा कि एक पर्याप्त सीवेज सिस्टम बनाकर उसे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से जोड़ा जाये। कोई भी अनुपचारित सीवेज खुले में नहीं छोड़ा जाना चाहिये। ऐसा सुनिश्चित करना प्राधिकरण के उपाध्यक्ष का काम है और राज्य के शहरी विकास के अतिरिक्त मुख्य सचिव और राज्य का प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इसकी निगरानी करेंगे।
पीठ ने दो माह के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया। पीठ ने अगली सुनवाई में वीडियो कांफ्रेंसिग के माध्यम से प्राधिकरण के उपाध्यक्ष और राज्य के शहरी विकास के अतिरिक्त मुख्य सचिव को उपस्थित रहने का निर्देश दिया।