नई दिल्ली । भारतीज जनता पार्टी (भाजपा) नेतृत्व अपनी चुनावी रणनीति में सामाजिक समीकरणों पर काफी जोर दे रहा है। पार्टी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), दलित और आदिवासी समुदायों को ध्यान में रखकर अपनी रणनीति को अमली-जामा पहना रही है। गुजरात में सरकार में हुए संपूर्ण बदलाव में सबसे ज्यादा महत्व इन्हीं वर्गों को दिया गया है। अन्य राज्यों में भी पार्टी इसी रणनीति को आगे बढ़ा रही है। पार्टी विभिन्न राज्यों के आने वाले विधानसभा चुनाव और उसके बाद लोकसभा चुनाव के लिए व्यापक सामाजिक समर्थन हासिल करने की रणनीति पर तेजी से काम कर रही है। गुजरात में भाजपा ने अपनी पूरी सरकार को ही नहीं बदला है, बल्कि सामाजिक समीकरणों को भी काफी हद तक बदल दिया है। राज्य के 24 नए मंत्रियों में लगभग तीन-चौथाई मंत्री पाटीदार, ओबीसी, दलित और आदिवासी समुदाय से बनाए गए हैं। इससे जाहिर है कि भाजपा भावी चुनावी समीकरणों में इन वर्गों को अपनी रणनीति के केंद्र में रखकर चलेगी। सूत्रों के अनुसार भाजपा का यह सामाजिक समीकरण केवल गुजरात तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि अन्य राज्यों में भी इस पर काम किया जाएगा। मध्य प्रदेश में पार्टी ने दलित और आदिवासी समुदाय के बीच जाने की योजना पर काम शुरू भी कर दिया है। सूत्रों के अनुसार, भाजपा इस समय दो मोर्चों पर काम कर रही है। इनमें एक सत्ता विरोधी माहौल को खत्म करना और दूसरा सामाजिक समीकरणों को साधना है। ओबीसी, दलित और आदिवासी समुदाय ऐसे वर्ग हैं, जिन पर दूसरे दलों की भी निगाहें लगी हुई हैं। ऐसे में भाजपा इन पर अपनी पकड़ को और ज्यादा मजबूत करना चाहती है। खासकर सत्ता में भी हिस्सेदारी को बढ़ा रही है, ताकि नीचे तक एक बड़ा संदेश जाए। गौरतलब है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में देश की सत्ता संभालने के बाद अपनी सरकार के केंद्र में गरीब कल्याण योजनाओं को रखा। 2016 में कालीकट में हुई पार्टी की राष्ट्रीय परिषद के अधिवेशन में इन कार्यक्रमों को विस्तारित रूप भी दिया गया। कोरोना काल की विषम परिस्थितियों में भी लगभग अस्सी करोड़ लोगों को मुफ्त खाद्यान्न केंद्र सरकार मुहैया कराती रही। ऐसे में उसकी पकड़ नीचे तक मजबूत होने का अनुमान है।
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