दक्षिणापथ, नगपुरा/दुर्ग।”मन धर्म से जुड़े उसे अनुयोग कहते हैं। अनुयोग का सार प्ररूपणा है। हमारा मन जब धर्म से जुड़ता है, तो हम धर्म के बारे में बोलने लगते हैं। धर्म के बारे में बात करते हैं। धर्म के विशय में वार्तालाप करते हैं। ध्यान रहे धर्म का वार्तालाप करते हुए धर्मात्माओं के गुणों की प्रशंसा करें। दूसरों में अवगुण देखने की प्रवृत्ति धर्म क्षेत्र में नहीं होनी चाहिए। धर्मात्मा को दुव्र्यवहार और दुर्वचन दोनों भोभा नहीं देता।” उक्त उद्गार श्री उवसग्गहरं पाश्र्व तीर्थ में चातुर्मासिक प्रवर्चन श्रृंखला में मुनि श्री प्रशमरति विजय जी (देवर्धि साहेब) म.सा. ने गौतम स्वामी रचित श्री आचारांग सूत्र की विवेचना करते हुए व्यक्त किए।
पूज्य देवर्धि साहेब ने कहा कि हम जो देखते हैं, वह हमारे अंदर पनपने लगता है। दोश देखेंगे तो हमारे अंदर दोश बढ़ेगा, औरों में गुण देखेंगे तो उनका गुण हममें अवतरित होगा। सद्गुणों की प्रशंसा करें।। प्रशंसा व्यक्ति के समक्ष नहीं, दूसरों के समक्ष करें, और बार-बार प्रशंसा करें। साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका की प्रशंसा, इनके गुणों का बखान, इनके प्रति बहुमान तीर्थंकर परमात्मा की भक्ति है। संघ को पच्चीसवां तीर्थंकर माना गया है। हमारा नियम हो कि हम प्रतिदिन धर्मात्माओं का, साधु-साध्वीयों का, श्रावक- श्राविकाओं का, सद्गुणी व्यक्तियों के गुणों का बखान करें, उनके धर्म क्रियाओं को स्मरण करें, उनके प्रति आदरभाव रखें, उनकी अनुमोदना करें। उनकी अनुमोदना करे। स्वयं में आदरभाव रखते हुए औरों के साथ भी चर्चा करें।
जहां विनम्रता है वहां ज्ञान टिकता है। ज्ञान का अहंकार अंदर का हल्कापन खत्म कर देता है। मुुझे कुछ नहीं आता, मेरे पास ज्ञान नहीं है, यह विनम्रता साधना की सफलता की ओर ले जाता है। पुष्प को अपने सुगंध का अहम् नहीं होता। मेघधनुश अपने सप्तरंगी इन्द्रधनुश पर अहम् नहीं करता। ऐसे ही ज्ञानी पुुरूष अपने ज्ञान का प्रदर्शन नहीं करता। श्री गौतम स्वामी चौदह पूर्वधर के रचयिता थे, परन्तु अपने संपर्क में आने वाले प्रत्येक आत्मा के समक्ष वे भगवान महावीर स्वामी के गुणों का ब खान करते थे। जब तक केवल ज्ञान नहीं मिलता तब तक भूल होना स्वाभाविक है। श्री गौतम स्वामी की विशेषता है कि प्रतिदिन वे केवलज्ञान के लिए सोचते थे। केवलज्ञान पाने की पीड़ा महसूस करते थे।
आज श्रावण बद पंचमी से पूज्य देवर्धि साहेब ने श्री आचारांग सूत्र एवं श्री विपाकसूत्र पर प्रवचन प्रारंभ करते हुए बतलाया कि जिनशासन पर श्री गौतम स्वामी का महान उपकार है। उन्होंने द्वादशांगी की रचना किए। श्री आचारांग सूत्र की विवेचना सर्वप्रथम श्रुतकेवली श्री भद्रबाहू स्वामी ने की है जिसमें विभिन्न सूत्रों के माध्यम से धर्म की चर्चा है। श्री विपाकसूत्र में भगवान महावीर ने पाप-पुण्य आधारित घटनाक्रम के कथानकों पर उपदेश दिए हैं।
आज पूज्य गुरूदेव को जागृतिबेन अजय शाह रायपुर की ओर से मनोरमा बेन अहमदाबाद ने श्री आचारांग सूत्र एवं शांताबेन सुरेन्द्र कुमार संकलेचा आर्वी ने श्री विपाकसूत्र वोहराया।
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