दक्षिणापथ, नगपुरा/ दुर्ग । ” समय का महत्व है जो इंसान समय के महत्व को समझ जाते हैं , समय का महत्व जो इंसान सीख गया , वह जिंदगी में जरूर सफलता प्राप्त करता है । समय बहुत महत्वपूर्ण है , समय बहुत मूल्यवान है , समय बड़ा बलवान है , समय किसी के लिए रूकता नहीं है । इसलिए हम सभी को समय का आदर और सदुपयोग करना चाहिए । बीता हुआ समय कभी भी वापस लौटकर नहीं आता है इसलिए जो समय अपने हाथ में है उसका सदुपयोग करना चाहिए । ” उक्त उद्गार श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ में चातुर्मास विराजित तेजस्वी प्रतिमा सम्पन्न कविरत्न मुनिप्रवर श्री प्रशमरति विजय जी म.सा. ने व्यक्त किए। देवर्षि साहेब के उपनाम से विख्यात मुनि श्री प्रशमरति विजय जी ने प्रवचन श्रृंखला में कहा कि ” आज से चातुर्मास प्रारंभ हो रहा है । चातुर्मास का तात्पर्य आराधनाओं में वृद्धि और विराधना से बचने का मौसम । आप आठ से दस महीनों में जो – जो धर्मप्रवृत्ति से दूर हो गए हैं वह प्रवृत्ति आज से शुरू हो जाना चाहिए और इसमें सतत् अभिवृद्धि करते हुए चार महीने तक धर्म आराधना में जुड़े रहना है । आपके पास धर्म आराधना , धर्म प्रवृत्ति के लिए समय नहीं है ऐसा नहीं है । समय तो बहुत है परन्तु इस समय को घर , दुकान , परिवार और मौजमस्ती में व्यतीत कर देते हैं । समय का दुरूपयोग दुर्गति को खींच लाता है , वही समय का सदुपयोग सद्गति को आमंत्रण देता है । आपका प्रयास हो कि आज से आप सभी समय का अधिक से अधिक सदुपयोग करें । जिनभक्ति ( परमात्म भक्ति ) और जिनवाणी ( गुरूभगवत का प्रवचन ) को अधिक से अधिक समय दें । परमात्मा की भक्ति मोक्ष का याद दिलाता है वहीं जिनवाणी ( प्रवचन ) मोक्ष में जाने का मार्गदर्शन देता है । आज चौमासी चौदस है आज से संकल्पित होकर सामयिक , प्रतिक्रमण , पौषध आदि क्रियाओं को बढ़ायें ताकि अधिक से अधिक विराधना से बच सकें और वास्तविक आराधना से जुड़ सकें । आहार एवं शरीर के प्रति ममत्व को कम किए बिना कर्मों की निर्जरा नहीं होती है इसलिए आज से छोटी – छोटी यथाशक्ति तपस्या से जुड़ें । रात्रि भोजन अभक्ष्य है जिसके बारे में कहने की जरूरत नहीं है । चौमासा में गुरूभगवंत का सान्निध्यता मिलता है , ध्यान रखें गुरूभगवंत की सेवा सुश्रुषा करें साथ ही तपस्वियों की सेवा से भी जुड़ें । धर्म तो बारह मास करना चाहिए , करते भी हैं लेकिन चौमासा में धर्म की विशिष्ट आराधना होती है । गुरूभगवंत की सान्निध्यता होने से जिनवाणी श्रवण , प्रतिक्रमण , पौषध , तपस्या , वेयावच्च , साधार्मिक भक्ति , नित्य प्रभुदर्शन – पूजन एवं विभिन्न अनुष्ठानों से जुड़ने का अवसर मिलता है इसलिए सद्भाग्य से हाथ में आये हुए अवसर का पूरा – पूरा लाभ उठाकर , समय का सदुपयोग कर आत्मा से परमात्मा बनने की मार्ग पर आगे बढ़ें , यह प्रयास हो ।

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