दक्षिणापथ. राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार अपने पैतृक गांव परौंख पहुंचे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि सपने में भी नहीं सोचा था कि गांव के रहने वाले मेरे जैसे सामान्य बालक को देश के सर्वोच्च पद के दायित्व के निर्वहन का सौभाग्य मिलेगा। लेकिन, हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था ने यह करके दिखा दिया।
स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान निर्माताओं के अमूल्य बलिदान व योगदान को याद करते हुए उन्हें नमन किया। सचमुच में आज मैं जहां पहुंचा हूं. उसका श्रेय इस गांव (परौंख) की मिट्टी और यहां के लोगों के स्नेह और आशीर्वाद को जाता है।
जहां भी हूं, परौंख के बलबूते हूं
राष्ट्रपति ने कहा, मैं कहीं भी रहूं, मेरे गांव की मिट्टी की खुशबू और गांव के निवासियों की यादें सदैव मेरे दिल में बसी हैं। मेरे लिए परौंख सिर्फ एक गांव नहीं, मेरी मातृभूमि है। यहां से मुझे आगे बढ़कर देशसेवा की सदैव प्रेरणा मिली। मातृभूमि की इसी प्रेरणा ने मुझे हाईकोर्ट से सुप्रीमकोर्ट, सुप्रीमकोर्ट से राज्यसभा, राज्यसभा से राजभवन और राजभवन से राष्ट्रपति भवन तक पहुंचा दिया।