भिलाई। कोरोना काल से उबरने के दौर में कलमकारों ने फिर एक बार अदब (साहित्य) से जुड़ी गतिविधियां शुरू की है। इसी कड़ी में आईन-ए-अदब की ओर से एक नशिस्त (गोष्ठी) चंद्रनगर कोहका स्थित मोहम्मद अबू तारिक के निवास पर रखी गई।
जिसमें हिंदी व उर्दू के शायरों ने अपने कलाम से समां बांध दिया। वहीं पैगम्बर हजरत मुहम्मद की शान में नात शरीफ भी पेश की गई।
मुख्य अतिथि कला परंपरा के संयोजक डीपी देशमुख ने अपने उद्बोधन में साहित्यिक पहल को बेहतर शुरूआत बताया। उन्होने छत्तीसगढ़ी में रचना पेश की तथा अपने कुछ संस्मरण बांटे। इस दौरान दल्ली राजहरा से खास तौर पर बुजुर्ग शायर लतीफ अहमद लतीफ शामिल हुए। आयोजन में आईन-ए-अदब ने अपने उस्ताद शायरों बदरुल कुरैशी बद्र और बाबा निजाम दुर्गवी को याद करते हुए अपनी खिराजे अकीदत पेश की।
नशिस्त का आगाज करते हुए नौशाद सिद्दीकी ने कहा- तीर है न तलवार है कोरोना, आखिर है क्या यार कोरोना। उन्होंने नात-ए-पाक और गजलें भी पेश की। नभनीर ने भी अपना कलाम सुनाया। नावेद रजा दुर्ग ने अपनी नात और गजल से नवाजा। उन्होंने कहा-नूर की बज्म सजाने मैं आता हूं, इन पर मालो-जर लुटाने मैं आता हूं।
आलोक नारंग ने बेहतरीन नात व गजल पढ़ी। उन्होंने कहा-वो नूरे हक, वो खत्मुल मुरसलीन, सबसे भले आए, न साया था मगर हम आप, सब साए तले आए। अब्दुल एजाज बशर ने नए अंदाज में गजल पेश करते हुए कहा-कौन आया था किसके वादे पर, किस्सा-ए-कोह-ए-तूर, क्या है जी। हजलकार रामबरन कोरी कशिश ने अपनी हास्य रचना से माहौल बदलते हुए कहा-सच कहूं तो उसने सुकूं पाया नहीं, कान फुरसत में जो खुजलाया नहीं।
निजाम राही ने अपने कलाम में कहा-रहने दो इनको हमारे ही सांचे में, ये एक दिन ढलेंगे, है मुमकिन कोई शक्ल दे दें नई सी। लतीफ अहमद लतीफ ने अपनी गजल मैं अकेले ही मजे में था पेश की। संचालन कर रहे मोहम्मद अबू तारिक ने अपनी गजल पेश करते हुए कहा-वक्त जैसे ठहर गया, तेरे जाने के बाद, फिर न महका कोई गुलाब, तेरे जाने के बाद। आखिर में नावेद ने सभी का शुक्रिया अदा किया।
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