काबुल । अफगानिस्तान में हजारा समुदाय के लोग विदेशी सैनिकों के बाहर जाने से अपने भविष्य को लेकर डरे हुए हैं। हजारा समुदाय के लोग अक्सर तालिबान की बर्बर्ता का शिकार होते रहे हैं। समुदाय के हमीदुल्लाह असदी ने अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि उनके लिए एक ही विकल्प है कि वह अगले घातक हमले की प्रतीक्षा करें या पहाड़ों में बढ़ते सैन्य दल में शामिल हो जाए।
जानकारी के अनुसार अफगानिस्तान की 3.8 करोड़ आबादी में लगभग 10 से 20 प्रतिशत ही हजारा समुदाय के लोग बचे हैं। इस्लामिक स्टेट के एक आत्मघाती हमले में गंभीर चोटों से उबरने के बाद हमीदुल्लाह ने सैन्य दल में शामिल होने का फैसला किया। असदी ने कहा कि हम हथियार उठाने के लिए मजबूर हैं। पिछले साल 29 फरवरी को अमेरिका और तालिबान के बीच करीब 18 महीनों की बातचीत के बाद एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किया गया था। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गत नवंबर में युद्ध प्रभावित इस देश में सैनिकों की संख्या कम करने का आदेश दिया था। अंतरराष्ट्रीय सैनिकों के आफगानिस्तान से हटते ही शांति वार्ता धीमी हो गई है। ऐसे में अफगान सुरक्षा बल तेजी से शक्तिशाली हो रहे तालिबान को खत्म करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हजारा समुदाय को डर है कि सरकार अगर गिरती है,तब देश फिर से गृहयुद्ध में उतर जाएगा। हजारा समुदाय के लोग शिया मुसलमान होते हैं। जो ज्यादातर पाकिस्तान और अफगानिस्तान में रहते हैं। अफगानिस्तान में तालिबान के शासन में हजारा समुदाय पर बहुत अत्याचार हो रहे हैं। अफगानिस्तान में अधिकांश सुन्नी मुसलमान हैं इसलिए हजारा समुदाय के साथ भेदभाव किया जाता रहा है। तालिबान शासन के दौरान हजारा समुदाय के लाखों लोगों का नरसंहार कर दिया गया।
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