देह के मर जाने के बाद उसमें जो चेतन है वह ज्यों का त्यों रहता है

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दुर्ग। गोर्होई  वैश्य समाज एम.पी. हाल में आयोजित श्रीमद्भागवत की दिव्य अमृतमयी कथा को संबोधित करते हुए ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु  शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के अन्य कृपा पात्र शंकराचार्य आश्रम रायपुर के प्रमुख डॉ .ब्रह्मचारी  इंदुभवानंद जी महाराज ने आज अंतिम दिवस की कथा को विस्तार करते हुए कहा राजा परीक्षित को सुखदेव जी महाराज अंतिम उपदेश देते हुए कह रहे हैं की परीक्षित तुम मृत्यु के भी मृत्यु हो मृत्यु तो कुछ है ही नहीं कभी-कभी स्वप्न में अपना सिर कटा हुआ दिखाई देता है अपनी मृत्यु भी दिख जाती है परंतु देखने वाला तो मरा नहीं है।घट का नाश होने से घटा काश का नाश नहीं होता। जैसे घट फूट जाने से आकाश नहीं फूटता है वह पहले की तरह आकाश ही रहता है वैसे देह के मर जाने के बाद उसमें जो  चेतन है वह ज्यों का त्यों रहता है। वह पहले भी ब्रह्म था बीच में भी ब्रह्म है और अंत में भी ब्रह्म रहता है। वास्तव में मन ही सूक्ष्म शरीर की सृष्टि करता है वासनाओं से सूक्ष्म शरीर की सृष्टि हो जाती है और उसमें मैं बुद्धि हो जाने से आत्मा फस जाता है। वास्तव में आत्मा का आना-जाना कुछ नहीं होता वह तो आकाश के समान सबका आधार है और अनंत है एवं रहता है। अपनी आत्मा के स्वरूप का विचार करो तुम मृत्यु के भी मृत्यु हो। हजार हजार मृत्यु आ जाएं परंतु वह तुम्हारा कुछ भी अनिष्ट नहीं कर सकती हैं। तुम तो यह अनुभव करो कि मैं ब्रह्म हूं मैं ही परम पद हूं ऐसा बार-बार अनुसंधान करने पर आत्मा से पृथक न शरीर रहता है ना संसार रहता है। कथा के पूर्व समाज के अध्यक्ष पवन ददरया एवं सभी सदस्यों ने मिलकर आरती व्यास पूजन एवं पोथी पूजन किया।

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