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ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगे
नियत भाँपने का हुनर जानता है
ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगे
रोएँगे बहुत लेकिन आँसू नहीं आएँगे
उँगलियों के हुनर से ऐ ‘अकमल’
शक्ल पाती है चाक पर मिट्टी
जाऊँ कहाँ शुऊ’र-ए-हुनर किस के पास है
आँखें हैं सब के पास नज़र किस के पास है
ग़लतियाँ अपनी न हों फिर भी मनाने का हुनर
इतना आसान नहीं ख़ुद को मिटाने का हुनर
इतना आसान नहीं ख़ुद को मिटाने का हुनर
हुनर-मंदी से जीने का हुनर अब तक नहीं आया
सफ़र करते रहे तर्ज़-ए-सफ़र अब तक नहीं आया
रोती आँखों को हँसाने का हुनर ले के चलो
घर से निकलो तो ये सामान-ए-सफ़र ले के चलो
घर से निकलो तो ये सामान-ए-सफ़र ले के चलो
संग पर फूल खिलाने का हुनर आता है
मुझ को एहसास जगाने का हुनर आता है
ये हुनर भी बड़ा ज़रूरी है
कितना झुक कर किसे सलाम करो
हर काम यूँ करो कि हुनर बोलने लगे
मेहनत दिखे सभी को असर बोलने लगे