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हर एक रात को महताब देखने के लिए
मैं जागता हूं तिरा ख़्वाब देखने के लिए
चांद भी हैरान दरिया भी परेशानी में है
अक्स किस का है कि इतनी रौशनी पानी में है
खुली छतों से चांदनी रातें कतरा जाएँगी
कुछ हम भी तन्हाई के आदी हो जाएँगे
फिर चांदनी लगे तिरी परछाईं की तरह
फिर चाँद तेरी शक्ल में ढलता दिखाई दे
हाथ में चांद जहां आया मुक़द्दर चमका
सब बदल जाएगा क़िस्मत का लिखा जाम उठा
पूछो ज़रा ये चांद से कैसे सहर हुई
इतनी तवील रात भी कैसे बसर हुई
महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से
ख़ुदा किसी की मोहब्बत पे मुस्कुराया है
शब-ए-वस्ल थी चांदनी का समाँ था
बग़ल में सनम था ख़ुदा मेहरबाँ था
इक रात चांदनी मिरे बिस्तर पे आई थी
मैं ने तराश कर तिरा चेहरा बना दिया
वो चांदनी वो तबस्सुम वो प्यार की बातें
हुई सहर तो वो मंज़र तमाम शब के गए
(साभार)