रायपुर ,कई बच्चे जन्म से ही कुछ बीमारियों से पीड़ित रहते हैं। वहीं कई बच्चे किसी दुर्घटना या अन्य कारणों से गंभीर बीमारी का शिकार हो जाते हैं। ऐसे बच्चों की नियमित स्वास्थ्य जांच व देखभाल नहीं हो पाने की वजह से बीमारियां उनके शरीर में धीरे-धीरे बढ़ती जाती हैं और गंभीर रूप ले लेती हैं। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के उप संचालक डॉ. व्ही.आर. भगत ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा संचालित चिरायु योजना के तहत चिकित्सा दलों द्वारा आंगनबाड़ी में दर्ज व स्कूलों में अध्ययनरत 18 वर्ष तक के सभी बच्चों का निःशुल्क स्वास्थ्य परीक्षण व यथासंभव इलाज किया जाता है। इसके अंतर्गत 44 तरह की बीमारियों का उपचार किया जाता है। आँख से कम दिखाई देना, कानों से कम सुनाई देना, विटामिन की कमी, एनीमिया, हृदय रोग जैसी बीमारियों की पहचान कर उनका इलाज किया जाता है। जिन बच्चों का इलाज स्थानीय स्तर पर संभव नहीं हो पाता उन्हें चिरायु दलों के द्वारा बेहतर इलाज के लिए उच्च स्वास्थ्य संस्थाओं में रिफर कर इलाज कराया जाता है। चिरायु दल द्वारा जन्म से 18 वर्ष तक के बच्चों की स्क्रीनिंग की जाती है। बच्चों की स्क्रीनिंग के लिए चिरायु टीम आंगनबाड़ी केन्द्रों व स्कूलों में जाकर नियमित जांच करती है। वर्तमान में प्रदेश में कुल 330 चिरायु दल सक्रिय हैं। इन दलों के द्वारा अप्रैल-2022 से अब तक 23 लाख 62 हजार 892 बच्चों की स्क्रीनिंग की जा चुकी है। श्रवणबाधित नेहा की बदली जिंदगी चिरायु दल द्वारा नियमित जांच के दौरान रायगढ़ जिले के बरमकेला विकासखंड में एक डेढ़ वर्षीय बच्ची नेहा (बदला हुआ नाम) श्रवण संबंधी विकार से पीड़ित पाई गई। बच्ची जन्म से ही श्रवण संबंधी विकार से पीड़ित थी। नेहा की सुनने की शक्ति अन्य बच्चों की अपेक्षा कम थी। स्क्रीनिंग के बाद नेहा को चिरायु दल द्वारा रायपुर मेडिकल कॉलेज रिफर किया गया। वहां सभी तरह की जांच के बाद स्पीच थेरेपी दी गई। चिकित्सा विशेषज्ञों के द्वारा नेहा को ‘कॉकलियर इम्प्लांट’ के योग्य बताए जाने पर 22 अगस्त 2022 को एम्स (AIIMS) रायपुर में ‘कॉकलियर इम्प्लांट’ किया गया। ऑपरेशन के बाद वह अभी स्वस्थ्य है। उसे विशेषज्ञों की निगरानी में रखा गया है। नेहा के परिवार ने इस इलाज के लिए राज्य शासन, एम्स रायपुर और रायपुर मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकीय दल तथा स्थानीय चिरायु दल के प्रति आभार प्रकट किया है।
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