नई दिल्ली । कर्नाटक हिजाब विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट में शनिवार को याचिका दायर कर देश के तमाम शैक्षणिक संस्थानों के लिए एक कॉमन ड्रेस कोड लागू करने की गुहार लगाई गई है। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय के बेटे 18 साल के लॉ स्टूडेंट निखिल उपाध्याय की ओर से अर्जी दाखिल कर मोदी सरकार और देशभर के राज्यों को प्रतिवादी बनाया गया है। याचिका में कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया जाए कि मान्यता प्राप्त सभी शैक्षणिक संस्थानों के लिए ड्रेस कोड लागू करे ताकि देश में समानता और सामाजिक एकता और गरिमा सुनिश्चित हो और देश की एकता और अखंडता और सुदृढ़ हो सके। याचिकाकर्ता ने कहा है कि एक तरह के एजुकेशनल माहौल और ड्रेस कोड से देश के लोकतंत्र का जो तानाबाना है, वह और मजबूत होगा।सभी स्टूडेंट को समान अवसर मिलेगा। कॉमन ड्रेस कोड न सिर्फ इसकारण जरूरी है, कि समानता की वैल्यू मजबूत होगी और सामाजिक न्याय और लोकतंत्र सुदृढ़ होगा। बल्कि इससे मानवीय समाज बनेगा। साम्प्रदायिक और जातीवाद जैसी प्रवृत्ति को रोकने में मदद होगी।
याचिका में दुनियाभर के कई देशों का हवाला देकर यूके, यूएस, फ्रांस, चीन, सिंगापुर आदि देशों में देशभर के लिए स्कूल कॉलेजों में कॉमन ड्रेस कोड है। कॉमन ड्रेस कोड से न सिर्फ आपसी रंजिश और हिंसा पर रोक लगेगी, बल्कि शैक्षणिक सस्थानों में शैक्षणिक माहौल पैदा होगा। इससे सामाजिक और आर्थिक विषमताएं भी दूर होंगी। कॉमन ड्रेस कोड होने से अलग-अलग कपड़ों के कलर वाले गैंग पर रोक लग सकेगी। अलग-अलग कपड़ों वाली गैंगबाजी नहीं होगी और इस तरह की चीजों को रोकने में मदद मिलेगी। याचिका में कर्नाटक में हिजाब पर बैन के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन का हवाला देकर कहा गया कि अनेक जगह इस लेकर प्रदर्शन हो रहा है। याचिका में कहा गया कि शैक्षणिक संस्थानों में ड्रेस कोड इसकारण भी जरूरी है, क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया गया,तब आने वाले दिनों में नागा साधु कह सकते हैं कि वहां एडमिशन लेकर और बिना कपड़ों के ही आएंगे क्योंकि यह उनके अनिवार्य धार्मिक प्रैक्टिस का हिस्सा है।
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