बासठ वर्षीय तुलसी साहू पशुपालन से कमा रही हैं हर महीने 30 से 40 हजार रुपए

by sadmin

मनरेगा से बने पशुशेड की सुविधा ने दूध उत्पादन को बनाया मुख्य व्यवसाय : 10 गाएं से बढ़कर हुई 42 गाएं

बालोद जिले अंतर्गत ग्राम पंचायत पेरपार निवासी 62 वर्षीय श्रीमती तुलसी साहू पशुपालन से हर महीने 30-40 हजार रूपए की आमदनी कमा रही हैं। साथ ही पशुशेड की सुविधा उपलब्ध होने से अब 10 गायों की जगह बढ़कर 42 गाएं हो गई हैं। इनमें 16 गायें दुधारू हैं। इससे वे रोजाना 40-50 लीटर दूध बाजार में बेच रही हैं। परिवार की दशा-दिशा में आये इस बदलाव को लेकर गाँव में सब श्रीमती तुलसी साहू को काफी सराहना मिल रही है। वे अन्य महिलाओं के लिए मिसाल बन रही हैं।
गौरतलब है कि श्रीमती तुलसी साहू के परिवार में 14 सदस्य संयुक्त रूप से निवास करते हैं। उनके परिवार में उनके पति श्री जगन्नाथ साहू के अलावा उनके तीन बेटे और पुत्रवधुएँ एवं 6 बच्चे हैं। इतने बड़े परिवार का भरण-पोषण लगभग 3 एकड़ की खेती एवं 10 पशुओं, जिनमें से चार ही दुधारु थे, पर निर्भर था। पशुओं को रखने के लिए कोई पक्की छतयुक्त व्यवस्था नहीं थी, जिससे व्यवसायिक रुप से दुग्ध उत्पादन नहीं कर पा रही थीं।
खेती और कुछ दूधारू गायों की आमदनी से परिवार चलाने में बड़ी मुश्किल हो रही थी। दूधारू गायें तो थीं लेकिन गायों को रखने के लिए पशुशेड नहीं होने के कारण सही ढंग से पशुपालन भी नहीं कर पा रहे थे। इसके अलावा साल 2020 में कोरोना महामारी के चलते लॉक-डाउन के कारण आर्थिक तंगी से जूझना पड़ रहा था। श्रीमती तुलसी साहू ने समझदारी दिखाते हुए परिवार के समक्ष अपनी निजी भूमि पर मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) के तहत पशुशेड निर्माण कर पहले से मौजूद 10 गायों को पालने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने परिवार को यह भी बताया कि वे गायों के दूध बेचकर परिवार का पालन-पोषण करना चाहती है। ऐसे में ग्राम पंचायत की पहल पर उनके यहाँ जून, 2020 में महात्मा गांधी नरेगा से 49 हजार 770 रुपये की लागत से पशु शेड का निर्माण हुआ।
श्रीमती तुलसी साहू ने बताया कि मनरेगा के तहत बने पशु शेड की सुविधा से उन्हें पशु पालन से जो आमदनी हुई, उससे वे 08 और नई गाएं खरीदी हैं और दो अतिरिक्त पशु शेड का निर्माण करवाया है। उन्होंने बताया कि पहले वे पारंपरिक रुप से पशुपालन कर रही थीं अब वे पशुपालन को डेयरी व्यवसाय में बदल दिया है। डेयरी की शुरुआत में पशुओं से जो गोबर मिला, उसे राज्य सरकार की गोधन न्याय योजना के तहत बेचने से 20 हजार रुपये की अतिरिक्त आमदनी हुई, जिससे दो नग वर्मी कम्पोस्ट टांका बनवाया। अब उसमें गोबर से जैविक खाद बना रहे हैं और उसे खाद के रूप में उपयोग कर रहे हैं।

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