दिल्ली | दिल्ली में प्रदूषण (Delhi Pollution) मामले पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई हुई. दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण (Air Pollution in Delhi-NCR) के मुद्दे पर हलफनामा दाखिल किया. दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा की 21 नवंबर तक लगाई गई पाबंदियों को 26 नवंबर तक के लिए बढ़ा दिया गया है. दरअसल, दिल्ली में बढ़ते हुए प्रदूषण को देखते हुए दिल्ली सरकार ने 21 नवंबर तक पाबंदियों को लागू कर दिया था. राज्य सरकार का मानना था कि इससे प्रदूषण पर रोक लगेगी. हालांकि, ऐसा होता हुआ नजर नहीं आया है.अपने हलफनामे में दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया कि प्रदूषण से निपटने के लिए गाड़ियों के पार्किंग चार्ज को तीन से चार गुना बढ़ाने की सिफारिश की गई है. इस मामले की जानकारी लोकल बॉडी अथॉरिटी को दे दी गई है. इसमें बताया गया है कि दिल्ली में ट्रैफिक को कम करने के लिए पुलिस की संख्या को बढ़ा दिया गया है. सरकार ने यात्रियों को लुभाने के लिए DTC और क्लस्टर बसों की संख्या को बढ़ाया दिया है. इसके अलावा, दिल्ली की सड़को पर धूल को साफ करने के लिए डस्टिंग मशीन की संख्या बढ़ाई गई है. इन उपायों के जरिए दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को रोकने की कवायद की जाएगी.
आपके कदमों की वजह से नहीं, बल्कि तेज हवा से कम हुआ प्रदूषण: सुप्रीम कोर्ट
प्रदूषण के मामले पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमन्ना ने कहा कि प्रदूषण से निपटने के लिए दीर्घकालिक उपाय किए जाने चाहिए. इस दौरान प्रदूषण को लेकर दायर याचिका पर वकील विकास सिंह ने कहा कि किसानों को वित्तीय मदद नहीं दिया गया. यही वजह है कि पराली जलाने की घटनाओं में इजाफा हुआ और इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. उन्होंने कहा कि कानून का पालन कराना राज्य सरकार का काम है. वहीं, सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दिल्ली में प्रदूषण कम हुआ है. इस वजह चीफ जस्टिस ने कहा कि प्रदूषण में कमी आपके कदमों की वजह से नहीं, बल्कि तेज हवा की वजह से हुआ है.सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि छह थर्मल पावर प्लांट 30 नवंबर तक बंद कर दिए गए हैं. इससे पहले 21 नवंबर तक निर्माण गतिविधि को एनसीआर में बंद कर दिया गया था. वहीं, बताया गया कि जरूरत पड़ने पर इसे आगे भी बढ़ाया जा सकता है. फिलहाल स्कूल और शिक्षण संस्थान फिजिकल शिक्षा के लिए बंद रखे गए हैं. प्रदूषण में आई कमी को लेकर जब मेहता ने कहा कि हाल के दिनों में इसमें गिरावट आई है. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि एक्यूआई 290 है. ये सुनने पर मेहता ने कहा कि हम 26 नवंबर को इस मामले पर पुनर्विचार करेंगे. उन्होंने कहा कि केंद्र के कर्मचारियों के लिए बस चलाई जा रही है. पुरानी गाड़ियों का चालान भी काटा जा रहा है. 17 नवंबर से 21 नवंबर के बीच 578 कंस्ट्रक्शन साइट को भी बंद किया गया है.
अपने कदमों के वैज्ञानिक प्रभाव का आकलन करिए: डीवाई चंद्रचूड़
सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए सार्वजनिक परिवहन के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए 22 तारीख से विशेष बस सेवाएं चालू की गई हैं. 15 साल से पुराने वाहनों को चलने की अनुमति नहीं दी गई है. उन्होंने बताया कि प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है. वहीं, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आपने जो कदम उठाए हैं, उसके वैज्ञानिक प्रभाव का आकलन करिए कि अगले सात दिनों में उससे क्या प्रभाव आया है. सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों की जानकारी देते हुए मेहता ने कहा कि कंस्ट्रक्शन साइट पर 11 लाख का जुर्माना लगाया गया है. 250 ऐंटी स्मॉग गन लगाई गई और 130 स्वीपिंग मशीन चल रही है.
किसान फिर से पराली जलाने की मांगेंगे अनुमति
चीफ जस्टिस ने कहा कि आपने जो भी निर्माण स्थल बंद किए हैं, वे सभी काम कर रहे हैं? इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा, अब वे काम कर रहे हैं, लेकिन ये 17-22 नवंबर तक के आंकड़े हैं. धूल प्रबंधन के उपाय जारी है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कमीशन को वैज्ञानिक आधार पर प्रदूषण को रोकने के लिए कदम उठाना चाहिए, अब 7 दिन का स्टडी डेटा भी उपलब्ध है. वहीं, चीफ जस्टिस ने कहा, कुछ हद तक धूल को नियंत्रित किया जा सकता है. लेकिन अब मजदूरों का कहना होगा कि वे फांकों पर हैं और किसान फिर से पराली जलाने की अनुमति मांगेंगे. उन्होंने कहा कि आप इसे क्या कहेंगे और क्या हम इसमें प्रतिबंध बढ़ा सकते हैं. अब आप तीन दिनों के बाद और समय के स्तर के अनुसार समीक्षा करेंगे.इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि हम हर रोज इस चीज की निगरानी कर रहे हैं. चीफ जस्टिस ने कहा कि इन प्रतिबंधों को आप ही को लागू करना होगा. वहीं, सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि कृपया मुझे डेड रिस्पांस प्लान दिखाने की अनुमति दें. इसमें एक सेल्फ कंटेन्ड और दूसरा सेल्फ ऑपरेटिंग है.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कही ये बात
सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, जब मौसम गंभीर हो जाता है तो हम उपाय करते हैं. इन उपायों को पहले से किया जाना चाहिए. यह अनुमान एक सांख्यिकीय मॉडल पर आधारित होना चाहिए. उन्होंने कहा कि ये राष्ट्रीय राजधानी है. हम दुनिया को जो संकेत भेज रहे हैं, उसे देखिए. आप इन गतिविधियों को पहले से रोक सकते हैं, ताकि गंभीर स्थिति भी न बने. हमें परिभाषित करना होगा कि दिल्ली के लिए एक्यूआई का स्वीकार्य स्तर क्या है. अपेक्षित हवा की दिशा-दशा पिछले 20 वर्षों कि हवा जैसी होगी. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, तब कंप्यूटर नहीं था और अब सुपर कंप्यूटर हैं. एक सांख्यिकीय मॉडल होने की जरूरत है. उन्होंने कहा, आपको मौसम के हिसाब से प्रदूषण का डेटा जमा करना होगा. आपको हवा की गति का कम से कम 15 साल के डेटा होना चहिए.
सुनवाई के दौरान क्या-क्या कहा गया?
चीफ जस्टिस ने कहा, हम इस मामले का निपटारा कर देंगे लेकिन हम इसे बंद नहीं करेंगे. हम इस पर अंतिम आदेश या निर्देश देंगे. जब तक गंभीरता है, तब तक इस मामले को लगभग रोज सुनना पड़ेगा. हमने अभी फोन पर एक्यूआई देखा है. यह अभी 318 है और 290 सही नहीं है. हवा के साथ कोई खास बदलाव नहीं हुआ है. उन्होंने कहा, अगले दो-तीन दिनों के लिए उपाय करें और हम अगले सोमवार को फिर से इस मामले की सुनवाई करेंगे. इस बीच यदि प्रदूषण का स्तर 100 आदि हो जाता है तो आप कुछ प्रतिबंध हटा सकते हैं.
निर्माण श्रमिकों को लेकर वकील ने कहा कि क्या निर्माण श्रमिक निधि का उपयोग तब तक किया जा सकता है जब तक श्रमिक काम से बाहर हैं? इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि हम जल्द ही उस पर आएंगे. श्रम कल्याण कोष में कितना पैसा है. इसके हजार करोड़ हैं, आप श्रमिकों को उसी से भुगतान करते हैं. वकील ने बताया कि इस साल निर्माण श्रमिक निधि में 2700 करोड़ रुपये थे. कोर्ट ने पूछा लेबल वेलफेयर फंड में कितना पैसा है? कोर्ट ने सुझाव देते हुए कहा कि जितने दिनों तक काम बंद रहा यानी 4 दिनों का मजदूरों को कुछ पैसा मिलना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि राज्यों को मजदूरों को पैसा देना चहिए ताकि वो जीविका को चला सके.
कोर्ट ने कहा कि केंद्र को हर साल अलग-अलग मौसमों में औसत वायु प्रदूषण के स्तर को निर्धारित करने के लिए पिछले पांच साल के आंकड़ों के आधार पर एक वैज्ञानिक मॉडल तैयार करना चाहिए और परिवेशी वायु गुणवत्ता को बिगड़ने से रोकने के लिए ‘गंभीर वायु प्रदूषण’ दिनों के अनुमानित दिनों से पहले कदम उठाना चाहिए. चीफ जस्टिस ने कहा, राज्य सरकारें इस मुद्दे की जांच क्यों नहीं कर सकतीं? जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अगर गोवर्धन मॉडल अपनाया जाता है ताकि यूपी, हरियाणा, पंजाब से पराली को उन राज्यों में भेजा जा सके जहां गाय के चारे की कमी है.
चीफ जस्टिस ने कहा कि क्या यह दिखाने के लिए कोई अध्ययन है कि पंजाब, यूपी, हरियाणा से कितना पराली हटाया गया है? उत्सर्जन के कौन से तरीके अपनाए गए हैं? उन्होंने कहा कि खेतिहर मजदूरों की कमी के कारण किसान मैकेनिकल हार्वेस्टर अपनाते हैं. यह पूरे भारत में एक बड़ी समस्या बन जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम सोमवार को सुनवाई करेंगे. सीजेआई ने कहा कि हम फिलहाल यह देख रहे कि उठाए गए कदम कितने कारगर हैं और कितने कदम उठाए गए हैं.