उत्तर प्रदेश | चुनाव की तैयारियां भाजपा ने तेज कर दी हैं। एक तरफ पार्टी किसान आंदोलन की काट निकालने की कोशिश में है तो वहीं दूसरी तरफ जातीय समीकरण साधकर विधानसभा चुनाव में बढ़त की रणनीति बना रही है। इसी कड़ी में भाजपा ने ओबीसी और अनुसूचित जाति के लोगों के सम्मेलन करने का फैसला लिया है। आने वाले दिनों में पार्टी हर जिले में इस तरह के सम्मेलन करने वाली है। इनके जरिए वह एक बार फिर से ओबीसी और दलित समुदाय के एक बड़े वर्ग को आकर्षित करना चाहती है। इसके लिए भाजपा ने प्रदेश के उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह को ओबीसी मोर्चे का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है। वहीं एक और उपाध्यक्ष देवेंद्र सिंह चौधरी को एससी मोर्चा की बैठकों की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
पार्टी नेताओं का कहना है कि 8 अक्टूबर से ऐसे सम्मेलनों की शुरुआत की जा सकती है। अन्य पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग की कुल 22 जातियों पर फोकस करते हुए भाजपा आगे बढ़ने की तैयारी में है। इनमें यादव, निषाद, चौहान, राजभर जैसी जातियां भी शामिल हैं, जिनकी गोलबंदी पर बीते कुछ सालों में राजनीतिक दलों ने खासा जोर दिया है। हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही ओबीसी जातियों का बड़ा वोट भाजपा को मिलता रहा है। यही नहीं खासतौर पर सपा के वोटर कहे जाने वाले यादवों का भी बड़ा वोट कई इलाकों में भाजपा को मिलता दिखा है।
इस रणनीति के तहत पार्टी कुछ सम्मेलन लखनऊ में ही आयोजित करेगी, इसके अलावा कुछ क्षेत्रों में किए जाएंगे। उन जातियों के प्रादेशिक सम्मेलन लखनऊ में होंगे, जिनका पूरे राज्य पर प्रभाव माना जाता है। इसके अलावा उन जातियों को लेकर सम्मेलन जिला और मंडल स्तर पर होंगे, जिनका प्रभाव खास क्षेत्रों में है। एक बार फिर से भाजपा का फोकस 2017 की अपनी रणनीति पर है, जिसके तहत उसने सवर्णों के बड़े वोट के अलावा गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित वोटों पर फोकस किया था। इस रणनीति में वह कामयाब भी हुई थी और बड़े पैमाने पर उसे इन जातियों का वोट मिला था।