रायपुर : अभी तक हम सफेद दूधिया रंग का चावल ही बोते और खाते आ रहे हैं। मगर अब काले रंग का चावल कहीं मिले तो यह अचरज की कोई बात नहीं है। छत्तीसगढ़ राज्य के धमतरी जिले के किसान भी अब इसे उगाने लगेे हैं। औषधीय गुणों से भरपूर ब्लैक राइस में सेलेनियम (एंटी कैंसर), एन्थ्रोसायनिन (एंटी एजेंट एवं एंटी ऑक्सीडेंट), जिंक, आयरन, फॉलिक एसिड, कैल्शियम और फाइबर प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। यह कैन्सर, मोटापा, ब्लड प्रेशर, कुपोषण, सिकल सेल, एनीमिया में लाभकारी होने के साथ ही इम्यून सिस्टम को मजबूत रखने में सहायक होता है। इस ब्लैक राइस की बाजार में अच्छी कीमत के साथ ही मांग भी खूब हो रही है।
ब्लैक राइस के उत्पादन के लिए प्रदेश में सबसे पहले धमतरी जिले के परसवानी निवासी प्रगतिशील किसान गजेन्द्र चन्द्राकर द्वारा असम से बीज मंगाकर इसे उगाया गया। आत्मा योजना के तहत कुरूद के हतबंध में 15 एकड़ में ब्लैक राइस की प्रदर्शनी लगाई गई थी। गौरतलब है कि 2018-19 में जिले में औषधीय गुणयुक्त ब्लैक राइस (कृष्णम) 70 एकड़ के क्षेत्र में बतौर प्रदर्शन लगाया गया। वहीं 35 एकड़ के क्षेत्र में मधुराज 55, महाजिंक 27 एकड़ में और 8 एकड़ में लोहन्दी (जिंक) की प्रदर्शनी किसानों के खेत में लगाई गई। किसानों ने तैयार उत्पाद को राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय प्रदर्शनियों में ले जाकर इसे एक नई पहचान दिलाई।
इसके बाद प्रदेश में वर्ष 2019 में राजधानी रायपुर में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय क्रेता-विक्रेता कृषक सम्मेलन में जिले के कुरूद स्थित ओजस्वी कृषक उत्पादक संगठन और कृषक रामलाल भतपहरी तथा थनेन्द्र साहू ने 110 क्विंटल ब्लैक राइस का सम्मेलन में आए निर्यातक से अनुबंध किया। इसमें प्रति किलो ब्लैक राइस का दर 100 रूपए तय हुआ। इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए वर्ष 2019-20 में आत्मा योजना के तहत कृषक प्रदर्शन के तौर पर 30 एकड़ में ब्लैक राइस की फसल लगाई गई। हाल ही में हतबंध में लाभांश वितरण का एक कार्यक्रम आयोजित किया गया, जहां ब्लैक राइस की खेती कर रहे युवा कृषक अभिरूचि समूह के किसानों को उनके द्वारा बेचे गए चावल का लाभांश मिला। उन्हें प्रति क्विंटल एक हजार रूपए का लाभ मिला। इसके तहत समूह के कृषक थनेन्द्र साहू, केजूराम देवांगन, लोकेश साहू, हरीश साहू और राजेश डोटे को कुल तीस हजार रूपए की आमदनी हो चुकी है।
युवा कृषक अभिरूचि समूह के किसान हतबंध निवासी केजुराम देवांगन और कृषक हरीश साहू बताते है कि जैविक पद्धति से तैयार किए गए इस फसल से आय में बढ़ोत्तरी तो होती है, साथ ही पर्यावरण को जैविक खेती से प्रदूषित करने से बचाया जा सकता है।
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