लंदन । वैज्ञानिक मिशनों के समर्थन में चंद्रमा पर खनन की अनुमति के लिए ‘आर्टेमिस समझौतों’ के प्रभाव में आने से अंतरराष्ट्रीय कानून में नया अध्याय जुड़ गया है। हाल ही में हुए अंतरराष्ट्रीय समझौतों के बाद अमीर देश कानूनी तरीके से चंद्रमा पर और अंतरिक्ष में अन्य पिंडों पर अपने वैज्ञानिक मिशनों के समर्थन में खनन कर सकते हैं। अमेरिका ने अपने अपोलो मिशन के करीब 50 वर्ष बाद 2020 में चंद्रमा पर मनुष्य भेजने की योजना की घोषणा की थी। पौराणिक मान्यता के अनुसार अपोलो की जुड़वां बहन के नाम वाली आर्टेमिस योजना चंद्रमा पर और चंद्रमा की परिक्रमा करते स्टेशन ‘गेटवे’ पर मनुष्य की स्थाई मौजूदगी से जुड़ी है।
दीर्घकालिक मानवीय मिशनों की निरंतरता के लिए आर्टेमिस में अंतरिक्ष के संसाधनों के उपयोग की परिकल्पना है। उदाहरण के लिए ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन के लिए चंद्रमा की चट्टानों और मिट्टी में खनन। ऑक्सीजन सांस लेने में कारगर हो सकती है और हाइड्रोजन पेयजल तथा रेडियेशन शील्ड के लिहाज से उपयोगी है। ऑक्सीजन और हाइड्रोजन अंतरिक्ष यात्रा के लिए आवश्यक प्रणोदक (प्रपलेंट) के भी मौलिक तत्व हैं। मौजूदा अंतरिक्ष संधियां अंतरिक्ष के संसाधनों के उपयोग का विनियमन नहीं करतीं और न ही वे इस पर रोक लगाती हैं। अमेरिका की 1967 की बाहरी अंतरिक्ष संधि को सबसे व्यापक रूप से अपनाया गया है। इसके अनुसार विभिन्न देश अंतरिक्ष में चंद्रमा या अन्य चीजों के हिस्सों पर स्वामित्व का दावा नहीं कर सकते।
आर्टेमिस में मिशन के समर्थन में अंतरिक्ष के संसाधनों के उपयोग के लिए कानूनी आधार स्पष्ट किया गया है। कानूनी तौर पर कहें तो समझौते को संधि नहीं कहा जा सकता। उनमें अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत बाध्यता नहीं होती। ये समझौते केवल अमेरिका और उन अन्य देशों पर लागू होते हैं तो आर्टेमिस के विभिन्न मिशन में भाग लेना चाहते हैं। हालांकि आर्टेमिस समझौतों की कानूनी अहमियत जरूर है। आर्टेमिस समझौतों में कुछ प्रावधान अंतरिक्ष संधि की व्याख्या करते हैं और इस तरह निष्पक्षता की बात आती है। समझौतों के अनुसार जो देश चंद्रमा के संसाधनों का दोहन कर रहे हैं या खनन कर रहे हैं, उनका उन संसाधनों पर कोई संपत्ति संबंधी अधिकार नहीं होता। इस रूप में देखें तो आर्टेमिस समझौता राष्ट्रीय विनियोग और उपयोग के संदर्भ में बाहरी अतरिक्ष संधि के प्रावधानों के दायरे में आता है।
व्यावहारिक रूप से देखें तो अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग कौन और किन परिस्थितियों में कर सकता है, इसे तय करने के लिए कोई नियामक रूपरेखा नहीं होने पर आर्टेमिस समझौता पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर अंतरिक्ष के संसाधनों के उपयोग का समर्थन करता है। परिणाम स्वरूप वित्तीय और प्रौद्योगिकीय रूप से संपन्न देशों को इससे लाभ होगा, वहीं अल्प विकसित या अंतरिक्ष के लिहाज से उभरते देशों को इससे लाभ नहीं होगा या कहें तो कम से कम सीधा लाभ नहीं होगा। आर्टेमिस समझौते का एक और प्रावधान बाहरी अंतरिक्ष संधि के पाठ के ब्योरे से संबंधित है।
इसके अनुसार चंद्रमा पर गतिविधियां संचालित करने वाले देशों को एक ‘सुरक्षित क्षेत्र’ बनाना होगा, ताकि अन्य देशों की गतिविधियों के साथ किसी तरह के नुकसानदेह हस्तक्षेप से बचा जा सके। अंतरिक्ष संधि में सुरक्षित क्षेत्र का उल्लेख नहीं है। इसमें केवल यह प्रावधान है कि देशों को अंतरिक्ष में गतिविधियां चला रहे अन्य देशों का सम्मान करते हुए अपने क्रियाकलाप करने होंगे। आर्टेमिस समझौतों में नई अवधारणाएं भी हैं।
पृथ्वी पर ऐतिहासिक स्थलों का संरक्षण निर्विवाद होता है, वहीं बाहरी अंतरिक्ष में किसी ऐतिहासिक स्थल का निर्धारण करने का कोई पूर्व उदाहरण नहीं है। यदि कोई देश एकपक्षीय तरीके से चंद्रमा के किसी क्षेत्र को ऐतिहासिक मूल्य वाला घोषित करता है तो यह गैर-विनियोग के सिद्धांत का उल्लंघन हो सकता है। मसलन अमेरिका अपोलो 11 के उतरने के स्थान और नील आर्मस्ट्रांग के जूतों के निशान को ऐतिहासिक महत्व का घोषित कर सकता है और उसके आसपास सुरक्षित क्षेत्र बना सकता है। हालांकि इस तरह की कार्रवाई चंद्रमा पर एक क्षेत्र के वस्तुत: उपयोग के समान हो सकती है।
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