कुएं के निर्माण के बाद अब साल भर कर रहे हैं साग-सब्जियों की खेती
बलरामपुर.कृषक अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर रहते हैं। लेकिन सिंचाई की सुविधा न हो पाने से कृषि कार्य करने में असमर्थ हो जाते हैं। असिंचित क्षेत्र जहां वर्षा के पानी पर कृषक निर्भर हुआ करते थे। वहीं आज महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से जल संवर्धन के कार्यों को प्राथमिकता से स्वीकृत कर कृषकों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने में मनरेगा मील का पत्थर साबित हो रहा है। जनपद पंचायत कुसमी के ग्राम पंचायत गौतमपुर के कृषक श्री अनिल के पास सिंचाई की सुविधा नहीं होने के कारण कृषि कार्य नहीं कर पाते थे और उन्हें अच्छी फसल की पैदावार भी नहीं मिल पा रही थी, क्योंकि उन्हें पूरी तरह वर्षा जल पर निर्भर रहना पड़ता था। किन्तु मनरेगा के तहत अनिल के खेत में कुआं निर्माण के बाद अब वे साल भर हरी साग-सब्जियों की खेती करते है, जिसे वे बेचकर अच्छी आमदनी भी प्राप्त कर रहे हैं और अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में सफल हो रहे हैं।
जिन खेतों में कृषक अनिल को एक फसल लेना मुश्किल होता था वहीं अब कुआं निर्माण से विभिन्न किस्म की फसलों का उत्पादन कर अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं। सिंचाई सुविधा को देखते हुए मनरेगा से स्वीकृत कूप निर्माण का कार्य कृषक अनिल के निजी भूमि पर किया गया। कूप निर्माण की प्रशासकीय स्वीकृति राशि 2 लाख 51 हजार थी। अनिल अपने खेतों में कुआं खुदाई के दिनों को बताते हुए कहते हैं कि कुआं निर्माण कार्य में 413 मानव दिवस निजी अर्जित किया और ग्राम पंचायत गौतमपुर(सोनवर्षा) के पंजीकृत श्रमिकों के साथ-साथ मैं और मेरी पत्नी भी कुआं निर्माण के कार्य में नियोजित रहे। कुआं निर्माण पूर्ण होने के उपरांत मैंने अपने खेतों में मौसम के अनुसार सब्जियां, धान, गेहुं, दलहन, तिलहन पैदावार करके अपने आय के स्त्रोत में वृद्धि की है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में मुझे कृषि उपज के बदले 2 लाख 56 रूपये की आमदनी हुई है जिसका श्रेय मनरेगा को जाता है साथ ही आगे मैं नाडेप, वर्मी टैंक, अंजोला टैंक लेकर अपने जीवन स्तर को और आगे उठाना चाहता हुं। कुआं निर्माण से पूर्व कृषक द्वारा असिंचित भूमि के कारण सिर्फ एक फसली खेती कर पाता था, परन्तु आज वर्तमान में कुआं बनने के पश्चात् धान की खेती के साथ-साथ वर्ष भर सब्जियों के खेती भी कर रहा है। अब उसे अतिरिक्त आमदनी हो रही है जो कि उसे अपने जीवन स्तर को आगे बढ़ाने में उपयोगी सिद्ध हुआ है।